सपा पूरी तरह से यूपी चुनाव 2022 की तैयारी में जुट चुकी है। सीएए का विरोध हो या यूपी का अन्य मुद्दा। समाजवादी पार्टी ने सीएम योगी आदित्यनाथ का विरोध कर खुद को मुख्य विपक्षी पार्टी बनाया हुआ है। मायावती की पार्टी बसपा से सपा का गठबंधन टूटने के बाद अखिलेश ने अकेले ही चुनाव लडऩे का ऐलान किया है। सपा की सक्रियता का असर हुआ है कि बीजेपी से लेकर बसपा व अन्य दल के नेता तेजी से सपा में शामिल हो रहे हैं। कभी यह स्थिति बीजेपी की होती थी। यूपी चुनाव २०१७ से पहले बीजेपी में अन्य दलों के नेताओं के शामिल होने की होड़ मची थी। सपा पर हमेशा ही एक जाति की राजनीति करने का आरोप लगता है। लेकिन सपा ने अब रणनीति बदल दी है। बसपा के कभी कद्दावर नेता माने जाने वाले रामप्रसाद चौधरी, पूर्व विधायक दूध नाम, जितेन्द्र कुमार, पूर्व जिला पंचायत सदस्य मालती देवी, विपिन शर्मा, उमेश पांडे आदि नेता सपा में शामिल हो चुके हैं। इसके अतिरिक्त कई अन्य नेता भी है जिन्हें अखिलेश यादव ने खुद सपा की सदस्यता दिलायी है। सीएम योगी आदित्यनाथ के खास माने जाने वाले व हिन्दू युवा वाहिनी (भारत) के अध्यक्ष सुनील सिंह, बसपा सरकार के पूर्व मंत्री डा.रघुनाथ प्रसाद भी सपा में शामिल हो गये हैं। बड़ी बात है कि सपा के विरोधी दल में यह भगदड़ क्यों मची है। इसका साफ संदेश है कि सपा मजबूत हो रही है और नेता सुरक्षित सहारा खोज रहे हैं।
यह भी पढ़े:-कोहरे के कारण रोडवेज बस और ट्रक में हुई जोरदार टक्कर, चार घायल सपा साध रही जातीय समीकरण, बीजेपी की बढ़ जायेगी मुश्किलपीएम नरेन्द्र मोदी की लहर व अमित शाह की रणनीति के चलते ही बीजेपी ने यूपी विधानसभा में रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी। बीजेपी की इस जीत में जातीय समीकरण बहुत काम आया था। डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्या से लेकर अन्य नेताओ को आगे करके बीजेपी ने सपा व बसपा के वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी की थी। सपा भी इसी राह पर चल रही है। सभी जाति के नेता को पार्टी में शामिल करके अपने पुराने वोट बैंक को फिर से पाने का प्रयास कर रही है। यूपी की राजनीति की जो स्थिति है उसमे एक तरफ बीजेपी होगी। जबकि दूसरी तरफ सपा, बसपा के साथ राहुल गांधी व प्रियंका गांध की कांग्रेस होगी। उसी दल की स्थिति मजबूत रहने वाली है जो सभी समीकरण को साधने में सफल रहेगी।
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