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बचपन से ही शुरु कर दिया था मलखंभ का खेल
भारतीय मलखंभ महासंघ के अध्यक्ष डॉ. रमेश हिंडोलिया के मुताबिक, देश में मलखंभ के लिए ये पहला द्रोणाचार्य अवॉर्ड है। योगेश शहर में ही गुदरी चौराहा क्षेत्र में रहते हैं। वे 5 साल की उम्र से मलखंभ कर रहे हैं। उन्होंने 16 वर्ष की उम्र से खुद मलखंभ करने के साथ इसका प्रशिक्षण देना भी शुरू कर दिया था। हालांकि, उन्हें मिले इस सम्मान से न सिर्फ शहर बल्कि प्रदेश का भी सम्मान बढ़ा है।
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धोबी घाट पर कपड़े धोए, कंठी-माला भी बेची
योगेश के पिता धर्मपाल मालवीय शहर स्थित महाकाल मंदिर के नज़दीक ड्रायक्लीन की दुकान चलाते थे। पारिवारिक स्थिति ठीक न होने के कारण योगश के कांधों पर बचपन से ही बड़ी जिम्मेदारियां थीं। काफी कम उम्र से ही वो पिता की दुकान भी संभालने लगे थे। धोबी घाट पर जाकर कपड़े धोने और प्रेस करने के साथ उन्होंने अपना मलखंभ का अभ्यास जारी रखा। शुरुआत में उन्होंने कबड्डी अभ्यास किया, लेकिन धीरे-धीरे वे मलखंभ और योग के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गए। 2006 में महाकाल क्षेत्र में पिता के साथ भक्ति भंडार की दुकान खोली। प्रशिक्षण देने के बाद नियमित यहां कंठी-माला बेचकर आजीविका भी चलाते रहे। 2006 में उन्हें शाजापुर में खेल एवं युवक कल्याण विभाग में मलखंभ डिस्ट्रिक्ट कोच के रूप में नियुक्त भी किया गया।
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योगेश के नाम के साथ जुड़ चुकी हैं ये उपलब्धियां