यहां गिरी थी मां की कोहनी
मान्यता है कि इस स्थान पर देवी सती की कोहनी गिरी थी, जिसके बाद यहां शक्तिपीठ स्थापित हो गया। मंदिर में लोगों के आकर्षण का केंद्र यहां प्रांगण में मौजूद 2 दीप स्तंभ हैं। यह स्तंभ लगभग 51 फीट ऊंचे हैं, दोनों दीप स्तंभों में कुल 1 हजार 11 दीपक हैं। स्तंभ इतने ऊंचे हैं कि यहां दीप जलाना बेहद कठिन है।
ये है रोचक कहानी
गुजरात के पोरबंदर से करीब 48 किमी दूर मूल द्वारका के समीप समुद्र की खाड़ी के किनारे मियां गांव है। खाड़ी के पार पर्वत की सीढिय़ों के नीचे हर्षद माता (हरसिद्धि) का मंदिर है। मान्यता है कि उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य यहीं से आराधना करके देवी को उज्जैन लाए थे। तब देवी ने विक्रमादित्य से कहा था कि मैं रात के समय तुम्हारे नगर में तथा दिन में इसी स्थान पर वास करूंगी। इस कारण आज भी माता दिन में गुजरात और रात में मप्र के उज्जैन में वास करती हैं।
ऐसे पड़ा हरसिद्धि नाम
स्कंदपुराण में कथा है कि एक बार जब चंड-प्रचंड नाम के दो दानव जबरन कैलाश पर्वत पर प्रवेश करने लगे तो नंदी ने उन्हें रोक दिया। असुरों ने नंदी को घायल कर दिया। इस पर भगवान शिव ने भगवती चंडी का स्मरण किया। शिव के आदेश पर देवी ने दोनों असुरों का वध कर दिया। प्रसन्न महादेव ने कहा, तुमने इन दानवों का वध किया है। इसलिए आज से तुम्हें हरसिद्धि के नाम से जाना जाएगा।
स्तंभों पर दीप जलाने करनी होती है बुकिंग
मान्यताओं के अनुसार दीप जलाने का सौभाग्य हर व्यक्ति को प्राप्त नहीं होता है, कहा जाता है कि जिस किसी को भी यह मौका मिलता है, वह बहुत ही भाग्याशाली माना जाता है। वहीं मंदिर के पुजारी का कहना है की स्तंभ दीप को जलाते हुए अपनी मनोकामना बोलने पर पूरी हो जाती है। हरसिद्धि मंदिर के इस दीप स्तंभ के लिए हरसिद्धि मंदिर प्रबंध समिति में पहले बुकिंग कराई जाती है। जब भी कोई प्रमुख त्योहार आता है, जैसे- शिवरात्रि, चैत्र व शारदीय नवरात्रि, धनतेरस व दीपावली पर दीप स्तंभ जलाने की बुकिंग साल भर पहले ही करवा ली जाती है। कई बार तो श्रद्धालुओं की बारी महीनों तक नहीं आती। पहले ये दीप प्रमुख त्योहारों पर ही रोशन होते थे, लेकिन अब सालभर दीप जलाए जाते हैं।
नवरात्रि में होता है खासा आकर्षण
वैसे तो हर समय ही यहां भक्तों की भीड़ रहती है। लेकिन नवरात्रि के समय और खासकर आश्विन नवरात्रि के अवसर पर अनेक धार्मिक आयोजन किए जाते हैं। रात्रि को आरती में एक उल्लासमय वातावरण होता है। इसलिए नवरात्रि के पर्व पर यहां खासा उत्साह देखने को मिलता है। मंदिर महाकाल मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित है। रात के समय हरसिद्धि मंदिर के कपट बंद होने के बाद गर्भगृह में विशेष पर्वों के अवसर पर विशेष पूजा की जाती है। श्रीसूक्त और वेदोक्त मंत्रों के साथ होने वाली इस पूजा का तांत्रिक महत्व बहुत ज्यादा है। भक्तों की मनोकामनाओं को पूरा करने के लिए यहां विशेष तिथियों पर भी पूजन करवाया जाता है।
अब हर रोज चढ़ता है 60 लीटर तेल, 4 किलो रुई
उज्जैन निवासी जोशी परिवार लगभग 100 साल से इन दीप स्तंभों को रोशन कर रहा है। दोनों दीप स्तंभों को एक बार जलाने में लगभग 4 किलो रूई की बाती व 60 लीटर तेल लगता है। समय-समय पर इन दीप स्तंभों की साफ-सफाई भी की जाती है।
विक्रमादित्य थे परम भक्त, 12 बार चढ़ाया अपना शीश
उज्जैन के राजा विक्रमादित्य माता हरसिद्धि के परम भक्त थे। कहा जाता है कि हर 12 साल में एक बार वे अपना सिर माता के चरणों में अर्पित करते थे, लेकिन माता के चमत्कार से राजा का सिर पुन: जुड़ जाता था। लेकिन इसके बाद बारहवीं बार जब उन्होंने अपना सिर चढ़ाया तो, वह फिर वापस नहीं आया। इस कारण उनका जीवन समाप्त हो गया। आज भी मंदिर के एक कोने में 11 सिंदूर लगे रुण्ड पड़े हैं। मान्यता है कि ये उन्हीं के कटे हुए मुण्ड हैं।