Kaal Bhairav Temple- महाकाल की नगरी उज्जैन में यह अनोखा मंदिर है। शिव का एक रूप भैरव भी है, जिन्हें भय का हरण करने वाले देव के रूप में जाना जाता है। काल भैरव इसलिए भी चमत्कारिक माना जाता है क्योंकि जब भगवान की प्रतिमा को मदिरा चढ़ाई जाती है तो वो मदीरा धीरे-धीरे गायब हो जाती है। यह मदिरा कहां जाती है और कैसे एक मूर्ति ग्रहण कर लेती है, इस तथ्य को लेकर वैज्ञानिक भी आज तक हैरान हैं। यही कारण है कि आज देशभर से श्रद्धालु काल भैरव का दर्शन करने आते हैं।
प्राचीन मान्यताओं के अनुसार काल भैरव तामसिक प्रवृत्ति के देवता माने जाते हैं। इसलिए उन्हें मदिरा यानी शराब का भोग लगाया जाता है। इस मंदिर में शराब चढ़ाने का प्रचलन सदियों से चला आ रहा है। असल में काल भैरव के मंदिर में शराब चढ़ाना संकल्प और शक्ति का प्रतीक माना गया है। इसलिए लोग यहां मदिरा चढ़ाते हैं। इस मंदिर में रोजाना करीब 2000 बोतल शराब का भोग भगवान को लगाया जाता है। इन्हें काशी का कोतवाल भी कहा जाता है।
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कहां गायब हो जाती है मदिरा
भगवान भैरोनाथ को प्रतिदिन सैकड़ों बोतल मदिरा चढ़ाई जाती है, लेकिन आज तक चढ़ाई गई मदिरा जाति कहा है, यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है। इस रहस्य को जानने के लिए वैज्ञानिक भी कई बार परीक्षण कर चुके हैं, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। बताया जाता है कि भारत की आजादी के पहले ब्रिटिश काल में एक अंग्रेज अफसर ने इसकी जांच भी कराई, लेकिन उसे भी कुछ हाथ नहीं लगा था। यह चमत्कार देख वो भी हैरान हो गया था। मंदिर के पूजन सामग्री के साथ ही शराब की दुकानें भी हैं, जहां से लोग अपने-अपने सामर्थ्य के हिसाब से मदिरा की बोतलें खरीदते हैं और भोग लगाते हैं। माना जाता है कि मदिरा चढ़ाने से सभी प्रकार के ग्रह दोष दूर होते हैं। इसके अलावा कालसर्प दोष, अकाल मृत्यु और पितृदोष दूर हो जाता है।
आज भी सिंधिया चढ़ाते हैं पगड़ी
400 साल पहले सिंधिया घराने के महादजी सिंधिया युद्ध के दौरान शत्रु राजाओं से पराजय का सामना करने वाला था। उस दौरान सिंधिया घराने की ओर से भगवान काल भैरव के चरणों में पगड़ी रखकर युद्ध में विजय बनाने की मनोकामना मांगी गई थी। उस समय भगवान ने उनकी मनोकामना पूरी की। इसके बाद से आज तक लगातार भैरव अष्टमी पर सिंधिया परिवार की ओर से पगड़ी चढ़ाने की परंपरा है।
कितना प्राचीन है यह मंदिर
ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार काल भैरव मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में राजा भद्रसेन ने कराया था। भद्रसेन एक बार युद्ध के लिए निकले थे और उन्होंने काल भैरव से प्रार्थना की थी कि यदि वे युद्ध में जीत जाते हैं तो वे यहां पर मंदिर का निर्माण कराएंगे। इसके बाद राजा भद्रसेन युद्ध जीत गए। यह मनोकामना पूरी होने के बाद राजा ने इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। उसके बाद परमार वंश के राजा भोज के द्वारा मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया। बाद में इस मंदिर का पुनर्निर्माण मराठा शासक के द्वारा करवाया गया। वर्तमान मंदिर की संरचना मराठा स्थापत्य शैली से प्रभावित है और मंदिर की दीवारों पर चित्रकारी मालवा शैली में की गई है।