महाकाल मंदिर
उज्जैन के महाकाल मंदिर को सबसे पहले उज्जैनी ( उज्जैन का पुराना नाम ) के महाराजा विक्रमादित्य ने बनवाया था। उसे बाद दिल्ली में गुलाम वंश ने राज किया। गुलाम वंश के शासक शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने महाकाल के मंदिर को तोड़ दिया था और उसके बाद उज्जैन में होने वाले कुंभ का आयोजन को भी बंद कर दिया गया था। इल्तुतमिश ने 1211 ईस्वी से 1236 ईस्वी तक शासन किया। बताया जाता है कि मंदिर को खंडित करने के बाद भी महाकाल के ज्योतिर्लिंग को करीब 500 सालों तक विक्रमादित्य के बनवाए मंदिर के भग्नावशेषों में ही पूजा जाता रहा था। शम्सुद्दीन इल्तुतमिश के हमले के दौरान मंदिर के पुजारियों ने महाकाल ज्योतिर्लिंग को एक कुंड में छिपा दिया था। कहा जाता है कि ज्योतिर्लिंग 500 सालों तक इसी कुंड में रहा।
रानोजी सिंधिया को सिंधिया राजवंश का संस्थापक माना जाता है। मराठा साम्राज्य के विस्तार के लिए जब रानोजी सिंधिया मालवा से बंगाल विजय के लिए जा रहे थे तब रास्ते में उज्जैन पड़ा। यहां उन्होंने महाकाल मंदिर की स्थिति देखकर काफी दुखी हुए और उन्होंने मंदिर के निर्माण का आदेश दिया। कहा जाता है कि उन्होंने अपने अधिकारियों और उज्जैन के कारोबारियों को आदेश दिया कि बंगाल विजय से लौटने तक महाकाल का भव्य मंदिर बन जाना चाहिए। बंगाल विजय के बाद जब रानोजी सिंधिया वापस लौटे तो उन्होंने कुंड से ज्योतिर्लिंग की प्रतिमा को निकालकर फिर से स्थापित किया। वहीं, उज्जैन में होने वाले सिंहस्थ मेले का भी शुभारंभ कराया। रानोजी सिंधिया ने 1731 से 1745 ईस्वी तक शासन किया था।
सिंधिया वंश के 14वीं पीढ़ी के वंशज ज्योतिरादित्य सिंधिया के अनुसार, जब हमारे पूर्वज महाराष्ट्र से निकले तो पहली राजधानी सिंधिया राजवंश की उज्जैन में बनी। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बताया कि सिंधिया राजवंश ने यह नीति बनाई कि उज्जैन के एक ही महाराज हैं और वो हैं महाकाल। सिंधिया ने कहा- मैं इस वंश की 14वीं पीढ़ी हूं और आज भी मैं जब मालवा के दौरे पर जाता हूं तो उज्जैन में कभी रात्रि विश्राम नहीं करता हूं। सिंधिया ने कहा- सिंधिया परिवार का गृहनिवास उज्जैन में कभी नहीं रहा, लेकिन उज्जैन शहर के बॉर्डर के बाहर एक महल है, हम वहां रुकते हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया भी महाकाल की शाही सवारी में शामिल होते हैं। रानोजी सिंधिया ने नीति बनाई थी कि सिंधिया परिवार के हर पीढ़ी का वंशज महाकाल के मंदिर में आएगा और वो यहां इस शाही सवारी में शामिल होगा। सिहंस्थ की शुरुआत उज्जैन नगरी के महाराजाधिराज महाकाल के कोतवाल कालभैरव को पगड़ी पहनाकर की जाती है। इस रस्म की शुरूआत तत्कालीन सिंधिया शासक महादजी सिंधिया ने शुरू करवाई थी, जो आज भी जारी है।
राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने अपनी आत्मकथा लिखी थी। उसमें भी महाकाल मंदिर और सिंधिया परिवार के बार में जिक्र किया है। कहा जाता है कि आज भी सिंधिया परिवार उज्जैन के कई मंदिरों का संरक्षण करता था।