खनन कार्य में महिलाओं की भूमिका बढ़ी है। हमने वर्ष 2030 तक 30 फीसदी महिला इम्प्लॉयमेंट का लक्ष्य रखा है और अभी तक 20 प्रतिशत लक्ष्य पूरा कर चुके हैं। ऐसे में अगले 7 साल तक तो 30 फीसदी से ज्यादा महिलाएं जुड़ चुकी होंगी।
पिता ने जो 20 साल में किया, वह करने में कई कम्पनियों की पीढिय़ां गुजर जाती हैं। उनकी सोच विकासपरक है। कोई मॉडर्न, इनोवेशन, यंग, आइडिया आए तो उसे अपनाने की परंपरा रही है।
महिलाओं की भूमिका में बेहद संभावनाएं है। जिंक पहली कम्पनी, जिसने 2019 में महिलाओं को खनन में शामिल किया। देश की पहली महिला रेस्क्यू टीम बनाई। महिला पहले इन कामों के लिए कभी सोच भी नहीं सकती थी। वे पहले इंजीनियर बनी, फिर पुरुष प्रधान इंडस्ट्री चुनी। मैं महिला कार्मिकों से मिलकर इंस्पायर होती हूं। अभी वीमन लेड इम्पॉवरमेंट का मंच है। लेकिन, ऐसी कोई चीज नहीं जो महिलाएं नहीं कर सकती हैं।
मानव श्रम अपनी जगह जरूरी है। श्रमिकों के साथ भूमिगत काम करने वालों को सुरक्षित माहौल देना है। अंदर जितनी भी गतिविधियां होती हैं, कंट्रोल रूम से नियंत्रित होती है। आने वाले समय में सब बाहर से ही कंट्रोल होगा। माइनिंग में अंदर मानव का आना जाना नहीं रहेगा।
एनिमल वेलफेयर मेरी पसंद है। हमेशा लगता था कि एनिमल के लिए भी कुछ करना चाहिए। उसी से संस्था योडा शुरू हुई। राजस्थान में भी काम करना है। एक वर्ल्ड क्लास एजुकेशन सेंटर, वेटनेरियन रिसर्च इंस्टीट्यूट शुरू करना है। स्ट्रीट एनिमल के लिए वर्ल्ड क्लास हॉस्पिटल शुरू करना है।
सोशल वर्क के लिए क्या सोच रखा है?
हमारा सपना है कि देश में 13 लाख आंगनवाड़ियों को नन्दघर बना दें। राजस्थान सरकार से एमओयू हुआ था। पापा कहते हैं कि कोई बच्चा भूखा नहीं सोए। राजस्थान में डेटा बेस स्टडी करके काम कर रहे हैं। चाइल्ड न्यूट्रेशन, वीमन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट, एनिमल वेलफेयर, स्पोर्ट्स और हेल्थ के लिए काम कर रहे हैं।
एक ही बात कहूंगी कि जो भी दिल में है, करना चाहते हो, कदम बढ़ाओ, अड़चने धीरे-धीरे अपने आप दूर हो जाएगी। मेरे पिता कहते रहे हैं- आप सही कर रहे हो तो डर हटा दो। पैर जमीं पर रखते हुए काम करते जाओ, सफलता जरूर मिलेगी।
मैंने साइकोलॉजी में ग्रेजुएशन की। इसके बाद मैंने जॉब करने का मानस बना लिया। पिता चाहते थे कि मैं अपनी कम्पनी में काम पर लग जाऊं। लेकिन, मेरा मन था कि जॉब करके खुद को साबित करूं। बता सकूं कि मैं व्यावसायिक माहौल में काम कर सकती हूं। पहला जॉब एडवरटाइजमेंट कम्पनी में किया। फिर रीडर फ्यूजन कम्पनी में दूसरी जॉब की।
मेरे जॉब करने पर पापा हड़बड़ा चुके थे। एक बार मैंने टीवी पर न्यूज देखी कि प्रिया अग्रवाल बोर्ड मेंबर होंगी, जबकि मुझे नहीं पता था और पापा ने करवा दिया। मैंने आनाकानी की तो पापा ने भरोसा दिलाया।
प्रिया अग्रवाल ने बातचीत में कहा कि उनका पूरा परिवार राजस्थान पत्रिका पढ़ता है। राजस्थान पत्रिका निर्भीक पत्रकारिता के लिए जाना जाता है। मेरे परिवार की जड़े राजस्थान से हैं। प्रिया ने राजस्थान पत्रिका उदयपुर संस्करण के 43वें स्थापना दिवस पर शुभकामनाएं दी।
प्रिया अग्रवाल अपने पति आकर्ष हेब्बर के लिए कहती हैं कि वो पूरी तरह से टेक्नोलॉजी से जुड़े हैं और काम में समर्पित है। पहले वो गूगल में काम करते थे। फिर मेकेनरी में काम कर रहे थे तब प्रोजेक्ट के लिए पिता ने उनको कोरिया भेजा। वो हमेशा कहते हैं कि फैमेली के साथ काम नहीं करना, मुझे हमेशा प्रोफेशनल रहना है।