मेनार का पक्षी वैविध्य अद्भुत है। आमतौर पर प्रवासी पक्षी ग्रेट ग्रीब राजस्थान में सर्दी खत्म होते ही अपने मूल स्थान को लौट जाता है लेकिन वह मेनार का ही होकर रह गया। कुछ वर्षों में इस पक्षी ने यहां घोंसला बनाना एवं प्रजनन प्रारंभ कर दिया। यही नहीं भारत का एंडेमिक पक्षी व्हाइट नेप्ड टिट यहां तालाब की पाल पर बबूल पेड़ों पर रहने लग गया है। यहां के सूक्ष्म आवासों में कई तरह की बतखें, रेप्टर्स, जलीय पक्षी, बिटर्न, वेडर्स, गिज एवं रिवर लेप्विंग, प्रेटिनकॉल, क्रीम कलर्ड कर्सर आदि देखने को मिलते है ।
आईबीए के लिए तैयार किया था प्रतिवेदन
वर्ष 2016 में डॉ. असद आर रहमानी, डॉ. सतीश शर्मा, डॉ.एन.सी. जैन, डॉ. एस.पी. मेहरा, डॉ. दीपेंद्रसिंह शेखावत एवं स्थानीय पक्षी प्रेमी आदि ने आईबीए के लिए पूर्व वैज्ञानिक प्रतिवेदन तैयार कर भेजा था जिसे अब सार्वजनिक किया गया है। इसका आईबीए साइट कोड आईएन-आरजे-30 है जिसका आईबीए क्राइट एरिया ए-1 है।यह उल्लेखनीय है कि राजस्थान के 31 आईबीए साइट्स में से मेनार ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जिसका संरक्षण स्थानीय ग्रामीणों के स्तर पर करना बताया गया है।
पत्रिका बना ‘आईबीए’ की राह में हमकदम यूं तो मेनार बरसों से परिदों की सुरक्षित पनाहगाह है लेकिन गत कुछ वर्षों में पक्षीविदों एवं पक्षी प्रेमियों के बीच मेनार वेटलैंड्स को लोकप्रिय बनाने में एवं इसके संरक्षण व संवद्र्धन के प्रति लोगों को जागरूकता लाने में राजस्थान पत्रिका का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पत्रिका ने मेनार वेटलैंड्स से जुड़ी हर एक महत्वपूर्ण एवं सम सामयिक जानकारी को प्रमुखता से प्रकाशित किया।
एक्सपर्ट व्यू….. पहले राजस्थान में 24 आईबीए साइट थे जो अब 31 हो चुके हैं। मेनार के साथ जंवाई को भी आईबीए नामित किया गया। मेनार जैसे छोटे क्षेत्र में जो जैव विविधता देखने को मिलती है, वह दक्षिणी राजस्थान के किसी अन्य स्थान पर दिखाई नहीं देती है। मेनारवासी बरसों से पक्षियों के संरक्षण के लिए बिना किसी पहचान के लिए काम करते रहे हैं। ये पक्षियों का शिकार नहीं करते, ना ही मछलियों को मारने देते हैंं और ना ही सिंचाई के लिए तालाबों के पानी का उपयोग करते हैं। इससे प्रेरित होकर किशन करेरी, बड़वई, नगावली, मोजा जलाशयों पर भी स्थानीय युवाओं में पक्षियों को बचाने की पहल कर रहे हैं।
डॉ. सतीश शर्मा, वन्यजीव विशेषज्ञ एवं पूर्व एसीएफ मेनार का आईबीए होना गौरव की बात है। यह सब गांव वालों के लम्बे समय से तालाब के संरक्षण और संवद्र्धन को लेकर प्रयासों का परिणाम है। गांव की दोनों झीलें ग्रामीणों के कारण ही बची हुई है। यहां किसी प्रकार का दखल नहीं करना चाहिए, गांव वाले इन जलाशयों को शुरू से बचाते आए हैं और भविष्य में भी बचाते रहेंगे।
डॉ. असद आर रहमानी, पूर्व निदेशक बोम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी मुम्बई