रक्त तलाई…..
इस युद्ध में प्रताप की सेना का नेतृत्व हकिमखान सूरी कर रहे थे तो अकबर की फौज मानसिंह की अगुवाई में लड़ रही थी। भगदड़ के बीच मुगल फौज खमनोर में रुकी तो महाराणा प्रताप की सेना भी उनका पीछा करते हुए वहां पहुंच गई। अचानक गुरिल्ला छापा मार युद्ध नीति खुले युद्ध में बदल गई। दोनों सेनाओ में भीषण युद्ध हुआ।
इधर स्वामिभक्त चेतक घायल होते हुई भी मेवाड़ के प्रताप को युद्ध भूमि से सुरक्षित निकाल ले आया। उसने 3 टांग पर ही 22 फीट के बरसाती नाले को पार कर लिया और फिर प्रताप की गोद में प्राण त्याग दिए। आज चेतक की समाधी पर लोग शीश नवाते है। प्रताप ने इस युद्ध के बाद अटल प्रतिज्ञा कर ली और जंगलो में रहकर दुश्मनो से लोहा लेते रहे लेकिन अकबर की गुलामी स्वीकार नहीं की।
इतिहासकार इस युद्ध की हार जीत पर बंटे हुए है लेकिन जिस मकसद से मानसिंह को अकबर ने प्रताप को जिन्दा या मुर्दा लाने भेजा वो पूरा नहीं हो सका जिससे अकबर मानसिंह से खफा हो गया।
हल्दीघाटी संग्रहालय
महाराणा की युद्ध स्थली को राष्ट्रीय स्मारक गोषित किया गया है। यहां एक संग्रहालय भी बना है जो हल्दी घाटी के इतिहास को आने वाले पर्यटको को जीवंतता के साथ बताता है। यह युद्ध स्वतंत्रता संग्राम की झलक थी। प्रताप ने अधीनता स्वीकार नहीं कर मुगलों को चैन से नहीं रहने दिया। दिवेर, कुंभलगढ़ समेत कई किले और चौकियां जीत ली और 57 साल की उम्र में शौर्य, त्याग, बलिदान, समर्पण और देशप्रेम की प्रतिमूर्ति हिंदुआ सूरज चावंड में सदा के लिए अस्त हो गया।