पहला कार्यक्रम डॉ. दौलतसिंह कोठारी शोध और शिक्षण संस्थान एवं विज्ञान समिति की ओर से हुआ। आयोजन में दस स्कूलों के 150 बच्चों ने हिस्सा लिया। दूसरा आयोजन राजस्थान विद्यापीठ डीम्ड विश्वविद्यालय में हुआ, जिसमें वीसी प्रो. शिवसिंह सांरगदेवोत की अध्यक्षता में विद्यार्थियों और अध्यापकों ने चंद्रयान-3 की संपूर्ण संरचना व कार्य विधि का पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन पर अवलोकन किया। डॉ. सेठ ने भारतीय रॉकेट के चार चरणों के बारे में बताया। विशेष रूप से प्रयोगशाला में बने पैलोड के बारे में बताया।
उन्होंने कहा कि चन्द्रयान से चन्द्रमा पर लैण्डर को रखने का विचार उदयपुर में ही 2004 में हुई कॉन्फ्रेंस में भारतरत्न पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने दिया था। डॉ. आशुतोष आर्य ने चन्द्रयान मिशन, मंगलयान मिशन, शुक्र मिशन की बारीकियां बताई। बताया कि दो किलोमीटर लम्बी ल्युनर लावा ट्यूब का पता लगाया है, जिसका उपयोग मानव के रहने के लिए किया जा सकता है। चन्द्रमा पर 8 सेमी की मोटी सतह के ऊपर और नीचे के तापमान का अन्तर 55 डिग्री पाया गया है, जो आश्चर्यजनक है। भारत ने जो सेन्सर बनाए हैं, वे 100 किलोमीटर दूर घूम रहे ओरबिटर से चन्द्रमा पर स्थित 30 सेमी बड़ी चीज देख सकते हैं। इसी से नासा की ओर से छोड़े गए पुराने लैण्डर का चित्र लिया है। दोनों संस्थानों में बच्चों ने वैज्ञानिकों से कई प्रश्न पूछे, जिनका उन्होंने जवाब दिया। ईसरो के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. सुरेंद्र पोखरना ने आभार जताया।