शिल्पग्राम के तीसरे दिन राजस्थानी लोक नाट्य शैली गायन और ठेठ देहाती अभिनय ने दर्शकों को लुभाया, मिट्टी का कुकर और बोतल बने आकर्षण का केन्द्र
उदयपुर. इनके साथ लावणी, कथक और गोटीपुवा का फ्यूजन, गुजरात का डांग नृत्य, हास्य झलकी दर्शकों द्वारा खासी सराही गईं।
उदयपुर•Dec 24, 2017 / 03:47 pm•
उदयपुर . हवाला स्थित शिल्पग्राम में दस दिवसीय शिल्पग्राम उत्सव के तीसरे दिन शनिवार की शाम मुक्ताकाशी मंच पर चुई गांव (नागौर) के बंशीलाल खिलाड़ी ने राजस्थानी लोक नाट्य शैली में ‘कुचामनी ख्याल’ के गायन और ठेठ देहाती अभिनय के पुट दर्शकों से खूब वाहवाही लूटी। गौरतलब है कि इन्हें हाल ही पद्मभूषण डॉ. कोमल कोठारी स्मृति लाइफ टाइम अचीवमेन्ट लोककला पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
सर्द शाम शहरवासियों ने जम्मू से आए कलाकारों के ‘रौफ नृत्य’ की मनोहारी प्रस्तुति और मणिपुरी कलाकारों के ‘लाय हरोबा’ में कृष्ण और राधा की अठखेलियों का पूरा लुत्फ उठाया। इस अवसर पर गोवा के लोक कलाकारों ने ‘समई नृत्य’ में सिर पर दीप स्तम्भ संतुलन की आकर्षक प्रस्तुति से खूब तालियां बटोरी। अन्य लोकविधाओं में सिक्किम का ‘मारूनी’, उत्तरप्रदेश का ‘डेडिया’ और अंतिम प्रस्तुति ‘नटुवा’ ने गुलाबी ठण्डक में गर्माहट पैदा कर दी। इनके साथ लावणी, कथक और गोटीपुवा का फ्यूजन, गुजरात का डांग नृत्य, हास्य झलकी दर्शकों द्वारा खासी सराही गईं।
READ MORE: SHILPGRAM 2017: उदयपुर में आकर शिल्पग्राम नहीं देखा तो फिर क्या देखा, ये तस्वीरें देख कर खुद को यहां आने से रोक नहीं पाएंगे आप… पारम्परिक शिल्प विरासत के दर्शन पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र की ओर से आयोजित उत्सव में देश के विभिन्न राज्यों की शिल्प वैविध्य का रंग हाट बाजार में देखने को मिल रहा है। देश के कोने-कोने से आए शिल्पकार अपने नायाब और कलात्मक उत्पाद लेकर आए हैं। दरअसल, मुख्य द्वार से प्रवेश करने के साथ ही प्रांगण में पारम्परिक शिल्प विरासत के दर्शन हो जाते हैं जहां बाड़मेरी पट्टू कलाकार अर्जुनराम अपनी खड्डी में शॉल बुनते नजर आते हैं। वहीं कुछ कदमों की दूरी पर गाडिय़ा लोहार गणपत भट्टी में लोहा तपाकर बर्तन बनाते देखा जा सकता है।
मेले में मणिपुर शिल्पकारों द्वारा सृजित ब्लैक मग व केतली लोगों के आकर्षण का केन्द्र बने हुए हैं। शिल्पकार लेखराज के अनुसार वे पत्थर को पीस कर उसमें मिट्टी का मिश्रण करते हैं तथा बाद में इन्हें वांछित आकार देकर पकाया जाता है। इसके बाद बांस की तांत को डंडियों पर कलात्मक ढंग से मढ़ा जाता है।
मिट्टी की बॉटल और कूकर भी उदयपुर में शिल्पग्राम उत्सव हो और मोलेला आर्ट का जिक्र न हो, ऐसा सम्भव नहीं है। नाथद्वारा के मोलेला ग्राम से आए कारीगर लक्ष्मीलाल बताते हैं कि वे इस बार मिट्टी से बनी पानी की बोतल लेकर आए हैं। इसके अलावा मिट्टी से बना कूकर धातु जैसे कुकर की तरह खाना पकने पर सीटी संकेत देने के कारण आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। वे कहते हैं कि इसमें पकने वाले खाने की पौष्टिकता अधिक रहती है। हां, इसके रखरखाव के प्रति ज्यादा सावधानी बरतनी होती है।
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