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टीकमगढ़

स्वर्णिम इतिहास से सुनहरे भविष्य का सफर तय करती राम राजा सरकार की नगरी ओरछा

टीकमगढ़/ओरछा. 15वीं शताब्दी में जब राजा रुद्र प्रताप ङ्क्षसह बुंदेला ने अपनी राजधानी के लिए बेतवा नदी के किराने इस सुंदर नगर को बसाया तो शायद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि वह एक स्वर्णिम इतिहास की नहीं बल्कि एक सुनहरे भविष्य की नींव रख रहे हैं। देश में ओरछा जैसी अन्य रिसायतें भी रही हैं, लेकिन धर्म परायणता के चलते जो महत्व वर्तमान में ओरछा को मिल रहा है, वह शायद ही देश में किसी अन्य रियासत को मिला हो। यही कारण है कि संवत 1631 में भगवान श्रीराम अपनी जन्मभूमि अयोध्या को छोड़कर ओरछा आ गए तो आज विश्व पटल पर इसकी कीर्ति चमकने जा रही है और हाल ही में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर की स्थाई सूची में शामिल करने के लिए इसके डोजियर को स्वीकार कर लिया है।

टीकमगढ़Oct 18, 2024 / 06:27 pm

Pramod Gour

ओरछा. जहांगीर महल।

ओरछा. जहांगीर महल।

यूनेस्को की विश्व धरोहर की स्थाई सूची में शामिल होने वाला प्रदेश का पहला नगर होगा

टीकमगढ़/ओरछा.15वीं शताब्दी में जब राजा रुद्र प्रताप ङ्क्षसह बुंदेला ने अपनी राजधानी के लिए बेतवा नदी के किराने इस सुंदर नगर को बसाया तो शायद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि वह एक स्वर्णिम इतिहास की नहीं बल्कि एक सुनहरे भविष्य की नींव रख रहे हैं। देश में ओरछा जैसी अन्य रिसायतें भी रही हैं, लेकिन धर्म परायणता के चलते जो महत्व वर्तमान में ओरछा को मिल रहा है, वह शायद ही देश में किसी अन्य रियासत को मिला हो। यही कारण है कि संवत 1631 में भगवान श्रीराम अपनी जन्मभूमि अयोध्या को छोड़कर ओरछा आ गए तो आज विश्व पटल पर इसकी कीर्ति चमकने जा रही है और हाल ही में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर की स्थाई सूची में शामिल करने के लिए इसके डोजियर को स्वीकार कर लिया है।
यूनेस्को की विश्व धरोहर की स्थाई सूची में शामिल होने वाला ओरछा प्रदेश का पहला नगर होगा। विदित हो कि अब तक प्रदेश की तीन धरोहरें जहां स्थाई सूची में शामिल हैं तो 11 को अस्थाई सूची में शामिल किया गया है। इसमें प्रदेश का कोई भी पूरा शहर नहीं है। इसके बाद यह पूरा नगर ही विश्व पर्यटन पर अपनी अलग पहचान बनाएगा। विदित हो कि ओरछा वर्तमान में प्रदेश के पर्यटन का गेट-वे कहा जाता है। धर्म, पुरातन और पर्यावरण को अपने आप में संजोए यह नगरी वर्तमान में देशी और विदेशी पर्यटकों के लिए खास है। यहां पर प्रतिवर्ष जहां लाखों की संख्या में देशी पर्यटक श्रीराम राजा के दर्शन करने पहुंचते हैं तो हजारों की संख्या में विदेशी भी यहां पहुंच कर इसकी खूबसूरती और यहां पर विराजे राम राजा की महिमा का गायन सुनते हैं।
यह है अनूठा: यहां राम ही हैं राजा

विश्व धरोहर की स्थाई सूची में ओरछा को शामिल करने के सबसे कारणों में ऐसे एक है यहां का श्रीराम राजा मंदिर। यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां राम की पूजा राजा के रूप में की जाती है। उन्हें पुलिस के सशस्त्र जवान जहां चार बार सलामी देते हैं यहां पर भगवान के उठने से लेकर सोने तक का समय राजा की तरह निश्चित किया गया है। संवत 1631 में ओरछा रियासत की महारानी कुंवर गणेश भगवान को अपने साथ लेकर ओरछा आई थीं।
लक्ष्मी मंदिर: हर जगह से दिखता है त्रिकोण

श्रीराम राजा मंदिर के पीछे एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित लक्ष्मी मंदिर अपने आप में अद्भुत है। आप जमीन से कहीं से भी इस मंदिर को देखेंगे तो यह आपको त्रिभुजाकार ही दिखेगा, लेकिन यह पूरी तरह से चतुर्भुजाकार है। इस मंदिर की इस खासियत को लेकर हजारों की संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं। बताते हैं कि यह मंदिर उस समय तंत्र साधना का प्रमुख केंद्र था। आज भी दीपावली के दिन बड़ी संख्या में लोग यहां पूजन करने जाते हैं।
चतुर्भुज मंदिर: जहां नहीं विराजे राम

श्रीराम राजा मंदिर से लगा चतुर्भुज मंदिर ओरछा की खास पहचान बना हुआ है। पत्थर से बना विशालकाय यह मंदिर भगवान राम के लिए बनवाया गया था, लेकिन बताते हैं कि राम इसमें नहीं विराजे। ओरछा से भगवान के आगमन की सूचना पर इस मंदिर का निर्माण शुरू कराया गया था, लेकिन उनके आने तक निर्माण पूरा न होने पर महारानी कुंवर गणेशी ने उन्हें रसोई में विराजमान कर दिया। बताते हैं कि इसके बाद भगवान वहां से हिले भी नहीं। तब से यह मंदिर सूना पड़ा हुआ है।
जहांगीर महल: मुगल-राजपूत कला का संगम

राजमहल के पीछे ही बना जहांगीर महल मुगल और राजपूत स्थापत्य कला का अनूठा संगम है। इसे मुगल सम्राट जहांगीर के स्वागत के लिए खास तौर बनवाया गया था। विदित हो कि हाल ही में ओरछा के राम राजा मंदिर परिसर में हुई खुदाई में 500 साल पुराने वातानुकूलित कक्ष मिलने के साथ ही सामने आया है कि इन महलों में भी वातानुकूलित कक्ष बने थे। बताया जाता है कि यह मुगलों से मिली तकनीक से बनाए गए थे।

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