scriptkundeshwar mahadev: धान कूटते समय निकलने लगा था रक्त, देखा तो प्रकट हो गए महादेव | kundeshwar mahadev mandir tikamgarh | Patrika News
टीकमगढ़

kundeshwar mahadev: धान कूटते समय निकलने लगा था रक्त, देखा तो प्रकट हो गए महादेव

kundeshwar mahadev-स्वयंभू भगवान कुण्डेश्वर, हर साल बढ़ता है शिवलिंग, 13वें ज्योतिर्लिंग के रूप में मान्यता

टीकमगढ़Jul 15, 2022 / 05:35 pm

Manish Gite

tikam1.jpg

kundeshwar mahadev mandir tikamgarh

टीकमगढ़। Kundeshwar Dham tikamgarh. स्वयं भू भगवान कुण्डेश्वर समूचे क्षेत्र में तेरहवें ज्योतिर्लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। स्वयं भू भगवान कुण्डेश्वर की द्वापर युग से पूजा की जा रही है। उस समय बाणासुर की पुत्री ऊषा ने यहां भगवान शिव की तपस्या की थी। वर्तमान में भी किवदंती है कि ऊषा आज भी भगवान शिव को जल अर्पित करने आती है। मगर उन्हें कोई देख नहीं पाता है। कुण्डेश्वर स्थित देवाधिदेव महादेव आज भी शाश्वत और सत्य हैं, इसका जीता-जागता प्रमाण स्वयं प्रतिवर्ष चावल के बराबर बढ़ने वाला शिवलिंग है।

 

समूचे उत्तर भारत में भगवान कुण्डेश्वर की विशेष मान्यता है। यहां पर प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान के दर्शन करने के आते हैं। कुण्डेश्वर स्थित शिवलिंग प्राचीन काल से ही लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां पर आने वाले श्रद्धालुओं द्वारा सच्चे मन से मांगी गई हर कामना पूरी होती है। पौराणिक काल द्वापर युग में दैत्य राजा बाणासुर की पुत्री ऊषा जंगल के मार्ग से आकर यहां पर बने कुण्ड के अंदर भगवान शिव की आराधना करती थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें कालभैरव के रूप में दर्शन दिए थे और उनकी प्रार्थना पर ही कालांतर में भगवान यहां पर प्रकट हुए हैं। कहते है आज भी वाणासुर की पुत्री ऊषा यहां पर पूजा करने के लिए आती है।

 

 

tikam2.jpg
यह भी पढ़ेंः ऐसा शिवालय जहां राजा कर्ण रोजाना करते थे स्वर्ण का दान

यह भी पढ़ेंः सावनः महाकाल दर्शन करने उमड़े हजारों श्रद्धालु, आप भी करें ऑनलाइन दर्शन

भगवान भोलेनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी पंड़ित जमुना प्रसाद तिवारी बताते है कि संवत 1204 में यहां पर धंतीबाई नाम की एक महिला पहाड़ी पर रहती थी। पहाड़ी पर बनी ओखली में एक दिन वह धान कूट रही थी। उसी समय ओखली से रक्त निकलना शुरू हुआ तो वह घबरा गई। ओखली को अपनी पीलत की परात से ढक कर वह नीचे आई और लोगों को यह घटना बताई।

 

लोगों ने तत्काल ही इसकी सूचना तत्कालीन महाराजा राजा मदन वर्मन को दी। राजा ने अपने सिपाहियों के साथ आकर इस स्थल का निरीक्षण किया तो यहां पर शिवलिंग दिखाई दिया। इसके बाद राजा वर्मन ने यहां पर पूरे दरबार की स्थापना कराई। यहां पर विराजे नंदी पर आज भी संवत 1204 अंकित है। जो उस समय की इस घटना का प्रत्यक्ष प्रमाण है।

 

पं. ओम प्रकाश तिवारी बताते हैं किवदंती है कि आज भी राजकुमारी ऊषा यहां पर भगवान शिव को जल अर्पित करने के लिए आती है। आज भी पता नहीं चलता है कि आखिर सुबह सबसे पहले कौन आकर शिवलिंग पर जल चढ़ा जाता है। इसका पता लगाने का भी प्रयास किया, लेकिन सफलता नही मिली।

tikam-2.jpg

राजा ने कराई खुदाई, नहीं मिली गहराई

मिनौरा निवासी वर्षो से भगवान को जल अर्पण करने आने वाले जुगलबाबू अहिरवार और नीमखेरा निवासी हुकुम यादव बताते है कि कुण्डेश्वर मंदिर में प्रत्येक वर्ष बढऩे वाले शिवलिंग की हकीकत पता करने सन 1937 में टीकमगढ़ रियासत के तत्कालीन महाराज वीर सिंह जू देव द्वितीय ने यहां पर खुदाई प्रारंभ कराई थी। उस समय खुदाई में हर तीन फीट पर एक जलहरी मिलती थी। ऐसी सात जलहरी महाराज को मिली। लेकिन शिवलिंग की पूरी गहराई तक नहीं पहुंच सके। इसके बाद भगवान ने उन्हें स्वप्र दिया और यह खुदाई बंद कराई गई।

 

यह है प्राचीन स्थल

गनेशगंज निवासी बृजेश विहारी पस्तौर और पंड़ित सुखराम रिछारिया बताते है कि कहा जाता है कि यह शिवलिंग प्रतिवर्ष चावल के दाने के आकार का बढ़ता है। इस मंदिर को लेकर आस्था ऐसी है कि इस स्थान को तेरहवें ज्योतिर्लिंग के नाम से जाना जाता है। भक्त इसे सभी ज्योतिर्लिंगों से अलग भी मानते हैं। क्योंकि सभी शिवलिंग की प्रतिष्ठा की गई है। जबकि कुण्डश्वर महादेव स्वयं भू है। सदियों से कुण्डेश्वर महादेव के प्रति भक्तों की आस्था ऐसी ही बनी हुई है। क्योंकि यहां पर उन्हें नजर आता है, उस दिव्य शक्ति का अलौक है।

tikam4.jpg

Hindi News / Tikamgarh / kundeshwar mahadev: धान कूटते समय निकलने लगा था रक्त, देखा तो प्रकट हो गए महादेव

ट्रेंडिंग वीडियो