स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सवाल उठाया कि अगर ये मंदिर रामानंद संप्रदाय का है तो वहां चंपत राय और दूसरे लोग क्यों हैं? वे लोग वहां से हट जाएं, ट्रस्ट के सभी लोग त्यागपत्र दें और मंदिर रामानंद संप्रदाय को सौंपे। प्राण प्रतिष्ठा के पहले ही यह मंदिर रामानंद संप्रदाय को सौंप दें और रामानंद संप्रदाय के लोग ही वहां प्राण प्रतिष्ठा करेंगे।”
ओडिशा के जगन्नाथपुरी में स्थित गोवर्धन मठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने भी श्रीराम मंदिर उद्घाटन और श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में जाने से इंकार किया है। त्रिवेणी तट पर हिंदू जागरण सम्मेलन को संबोधित करने बीते दिन पहुंचे शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने मीडिया से कहा कि आज सभी प्रमुख धर्मस्थलों को पर्यटन स्थल बनाया जा रहा है और इन्हें भोग-विलासिता की चीजों से जोड़ा जा रहा है, जो ठीक नहीं है। शंकराचार्य निश्चलानंद ने आगे कहा, कि ‘मोदी जी लोकार्पण करेंगे, मूर्ति का स्पर्श करेंगे, तो मैं वहां तालियां बजाकर जय-जयकार करूंगा क्या? मेरे पद की भी मर्यादा है। राम मंदिर में मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा शास्त्रों के अनुसार होनी चाहिए, ऐसे आयोजन में मैं क्यों जाऊं’।
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य जगतगुरु स्वामी भारती तीर्थ का भी वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा था। इसमें दावा किया गया था कि शंकराचार्य रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में नहीं जा रहे हैं। इसमें कहा गया है कि हिन्दू समाज को मूर्ख बनाने और लोकसभा चुनाव से पहले प्रोपेगंडा खड़ा करने के लिए यह भाजपा का प्रयोजित कार्यक्रम है। लेकिन अब मठ की ओर से कहा गया है कि यह हमारे धर्म के द्रोहियों का फैलाया गया प्रोपेगंडा है। उन्होंने अपील की है कि भगवान राम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा पौष शुक्ल द्वादशी 22 जनवरी को होने वाली है। यह हर्षप्रद है, लेकिन धर्मद्वेषी सोशल मीडिया पर ऐसा प्रचारित कर रहे हैं जैसे कि श्रृंगेरी शंकराचार्य समारोह के विरोध में हैं। लेकिन यह दुष्प्रचार है। शंकराचार्य ने दीपावली पर ही लोगों से इस कार्यक्रम में यथासंभव भाग लेकर भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए कहा था। साथ ही प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम के दौरान श्रीराम तारक महामंत्र का पाठ करने के लिए कहा था। हालांकि मठ ने शंकराचार्य के कार्यक्रम में शामिल होने पर कुछ नहीं कहा।
द्वारकापीठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती से संबंधित एक वीडियो वायरल हो रहा था, इसमें शंकराचार्य प्राण प्रतिष्ठा के तौर तरीके पर सवाल उठाते और कहते दिख रहे ते कि यह कार्यक्रम राम मंदिर का नहीं, बल्कि वोटों का है। उनका कहना है कि पौष के अशुभ माह में प्राण प्रतिष्ठा का कोई कारण नहीं है, यह सीधे तौर पर बीजेपी का राजनीतिक हित साधने वाला है। लेकिन अब द्वारका पीठ ने शंकराचार्य के निजी सचिव ब्रह्मचारी सुबुद्धानंद के हवाले से स्पष्टीकरण जारी किया है और कहा है कि वायरल वीडियो में उनका वक्तव्य नहीं है और भ्रामक है। कहा है कि हमारे गुरुदेव ने इसके लिए बहुत संघर्ष किया था। 500 साल पुराना विवाद समाप्त हुआ, यह सनातन धर्मावलंबियों के लिए प्रसन्नता का अवसर है। साथ ही कहा गया है कि हम चाहते हैं कि श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा समरोह के सभी कार्यक्रम वेद शास्त्रानुसार, धर्मशास्त्रों की मर्यादा का पालन करते हुए संपन्न हो। हालांकि इन्होंने भी कार्यक्रम में जाने को लेकर कुछ नहीं कहा है।
आदि शंकराचार्य के जीवनवृत्त पर शोध ग्रंथ लिख चुके पीएन मिश्रा का कहना है कि आदि शंकराचार्य ने देश में चार पीठ उत्तर में ज्योतिष्पीठ, दक्षिण में श्रृंगेरी, पूर्व में गोवर्धन और पश्चिम में शारदा पीठ बनाए थे। चारों पीठों पर अपने शिष्यों को नियुक्त कर आदिशंकराचार्य ने अपना निवास कांची में बनाया, आगे चल कर वहां के प्रमुख भी शंकराचार्य कहे जाने लगे। शंकराचार्य की नियुक्ति और प्रशिक्षण, उत्तराधिकार की पूरी प्रक्रिया आदि शंकराचार्य ने मठाम्नाय और महानुशासन में लिखा है। लेकिन कभी राजाओं ने, तो कभी सरकारों ने इनको लेकर विवाद पैदा किए। लेकिन कानून और धर्मसत्ता ग्रंथों के नियम से बंधी होती है और इसी से चलती है। शंकराचार्यों की मर्यादा है कि वे न किसी की पूजा का पौरोहित्य कर सकते हैं न यजमान हो सकते हैं। ऐसी स्थिति में उनकी उपस्थिति ही वहां होगी। इसी पर कहा होगा।