हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के ग्वालियर में स्थित भगवान शिव के उस धाम की जहां स्वयं नागों ने शिवलिंग की रक्षा के लिए मुगल सैनिकों पर तक हमला कर दिया था।
जानकारों के अनुसार ग्वालियर शहर में कोटेश्वर महाराज का मंदिर पूरे अंचल की आस्था का केन्द्र है। मंदिर में जो शिवलिंग है वो दिव्य है और सदियों पुराना है। कोटेश्वर महादेव के शिवलिंग को तोडऩे की कोशिश तत्कालीन मुगल बादशाह औरंगजेब ने भी की थी, लेकिन वो इसका कुछ नहीं बिगाड़ सके। बताया जाता है कि औरंगजेब के इस हमले के दौरान नागों ने शिवलिंग की रक्षा की थी।
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ऐसे मिला कोटेश्वर महादेव नाम
कोटेश्वर महादेव का मंदिर पहले ग्वालियर दुर्ग पर स्थित था। 17 वीं शताब्दी में मुगल शासक औरंगजेब जब हिन्दू देवी देवताओं के मंदिर को तहस-नहस कर रहा था, तो ग्वालियर दुर्ग स्थित यह प्राचीन मंदिर भी उनके निशाने पर था। औरंगजेब की इस बर्बरता का शिकार कोटेश्वर महादेव मंदिर भी हुआ।
हमले के बावजूद शिवलिंग को नुकसान नहीं पहुंचा पाए औरंगजेब के सैनिक…
कहा जाता है कि जब औरंगजेब के सैनिक मंदिर को लूट रहे थे और तभी नागों ने इस दिव्य शिवलिंग को अपने घेरे में ले लिया, जिससे सैनिक शिवलिंग को नुकसान नहीं पहुंचा पाए।
लोगों के अनुसार मंदिर उजाड़ने का आदेश औरंगजेब ने अपने सैनिकों को दिया था। सैनिकों ने बाबा के मंदिर से शिवलिंग को उखाड़ने का प्रयास किया जिसके बाद वहां पर सैकड़ों की संख्या में नाग पहुंच गए और उन्होंने सैनिकों को डंस लिया था।
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इसके बाद ये शिवलिंग दुर्ग से हटकर किले की कोटे में आ गिरा। किले के कोटे में शिवलिंग मिलने के कारण शिवलिंग को कोटेश्वर महादेव कहा गया।औरंगजेब के हमले के बाद कोटेश्वर मंदिर में रखा शिवलिंग सदियों तक किले की तलहटी में दबा रहा। मंदिर से जुड़े लोग बताते हैं कि संत देव महाराज को स्वप्न में नागों के द्वारा रक्षित मूर्ति के दर्शन हुए, उनके कानों में उसे बाहर निकलवा कर पुनस्र्थापित किए जाने का आदेश गूंजा। महंत देव महाराज के अनुरोध पर जीवाजी राव सिंधिया ने किला तलहटी में पड़े मलवे को हटा कर प्रतिमा को निकाला और संवत 1937-38 में मंदिर बनवा कर उसमें मूर्ति की पुन:प्रतिष्ठा करवाई।
वहीं पूर्व में जब किले पर स्थित शिव मंदिर में अभिषेक होता था, तो यह जल मंदिर से नीचे बने एक छोटे से कुंड में एकत्रित होता था। इस कुंड से पाइप लाइन से यह पानी बहकर नीचे आता था। जो कि एक बड़े कुंड में एकत्रित होता था। इस कुंड में नीचे तक जाने की किसी को इजाजत नहीं थी।