दरअसल आज हम बात कर रहे हैं देवभूमि उत्तराखंड के गंगोलीहाट में मौजूद माता हाट काली के बारे में, सेना की इन आराध्य देवी मां हाट कालिका का यहां ऐसा मंदिर है, जहां पर भारतीय सेना के कई बड़े अफसर भी लगातार आते रहे हैं।
इस हाट कालिका मंदिर की घंटियों से लेकर यहां की धर्मशालाओं तक में में किसी न किसी आर्मी अफसर का नाम जरूर मिल जाएगा। इसका कारण यह भी है कि देवी मां हाट कालिका को कुमाऊं रेजीमेंट आराध्य देवी के रूप में पूजता है। जिसके चलते सालभर आम लोगों के साथ ही यहां कुमाऊं रेजीमेंट के जवानों और अफसरों की भीड़ लगी रहती है।
ऐसे बनी कुमाऊं रेजीमेंट की आराध्य देवी
बतया जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध यानी 1939-1945 के समय एक बार भारतीय सेना का एक जहाज डूबने लगा, तब सैन्य अधिकारियों ने जवानों से अपने-अपने भगवान को याद करने का कहा गया। लेकिन कुछ नहीं हुआ और सभी को जहाज डूबने का पूरा विश्वास हो गया।
इसी समय कुमाऊं के सैनिकों ने जैसे ही हाट काली का जयकारा लगाया, वैसे ही जहाज अपने आप किनारे आ गया, तभी से कुमाऊं रेजीमेंट ने मां काली को आराध्य देवी की मान्यता दे दी। ऐसे में अब जब भी कुमाऊं रेजीमेंट के जवान युद्ध के लिए निकलते हैं तो वे काली मां के दर्शन के बाद ही आगे कदम बढ़ाते हैं।
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सेना ने स्थापित की महाकाली की पहली मूर्ति
पाकिस्तान के साथ हुए 1971 के युद्ध के बाद कुमाऊं रेजीमेंट ने सूबेदार शेर सिंह के नेतृत्व में एक सैन्य टुकड़ी ने इस मंदिर में महाकाली की मूर्ति की स्थापना की। सेना की ओर से स्थापित यह मूर्ति मंदिर की पहली मूर्ति थी। इसके बाद साल 1994 में कुमाऊं रेजीमेंट ने ही मंदिर में महाकाली की बड़ी मूर्ति लगाई, इसके अतिरिक्त रानीखेत स्थित कुमाऊं रेजीमेंटल सेंटर के अलावा रेजीमेंट की बटालियनों में भी मां हाट कालिका के मंदिर स्थापित हैं।
1971 की लड़ाई से भी है नाता
भारतीय सेना ने साल 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान बुरी तरह से हरा दिया, जिसके बाद पाकिस्तानी सेना के करीब 1 लाख जवानों ने 16 दिसंबर 1971 को भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था। वहीं सेना की इस विजय से भी मां हाट कालिका का गहरा नाता माना जाता है। इसका कारण यह बताया जाता है कि 1971 की भारत-पाक लड़ाई के दौरान जवानों में महाकाली का जयकारा दोगुना जोश भर देता था।