यह अनोखी परंपरा करीब 30 सालों से चली आ रही है। माता को चप्पल चढ़ाने के पीछे कहानी यह है कि पंडित ओम प्रकाश महाराज ने यहां मूर्ति स्थापना के साथ शिव-पार्वती विवाह कराया था, इसमें खुद कन्यादान किया था। तब से वह मां सिद्धदात्री को बेटी मानकर पूजा करते हैं और आम लोगों की तरह बेटी की हर इच्छा को पूरी करते हैं। पुजारी के अनुसार वह एक बेटी की तरह मां दुर्गा की देखभाल करते हैं।
पुजारी बताते हैं कि कई बार उन्हें आभास हो जाता है कि मां दुर्गा को पहनाए कपड़ों से वह खुश नहीं हैं तो दो-तीन घंटों में ही कपड़े बदल देते हैं। पुजारी बताते हैं कि जीजीबाई माता के लिए विदेशों में बस चुके भक्त वहां से चप्पल भेजते हैं। कभी सिंगापुर तो कभी पेरिस से माता के लिए चप्पलें आई हैं।
भक्तों द्वारा चढ़ाए जाने वाले जूते-चप्पलों को गरीब बेसहारा और जरूरतमंदों को प्रसाद के रूप में दे दिया जाता है या गरीबों के बीच इन्हें बाट दिया जाता है। इस मंदिर में पूरे साल तक समय-समय पर धार्मिक अनुष्ठान होते रहते हैं।
तीन सौ सीढ़ी के ऊपर सजा माता का दरबार
मां सिद्धिदात्री मंदिर कोलार की पहाड़ी पर स्थित है और इस मंदिर की स्थापना ओमप्रकाश महाराज ने करीब 30 वर्ष पहले की थी। इस मंदिर में पहुंचने के लिए भक्तों को तकरीबन 300 सीढ़ी चढ़कर पहाड़ी पर पहुंचना पड़ता है। वे बताते हैं कि मंदिर की स्थापना से पहले भगवान शिव पार्वती के विवाह का अनुष्ठान कराया गया था।
इस विवाह में उन्होंने पार्वतीजी का खुद कन्यादान अपने हाथों से किया था, इसलिए पंडित ओम प्रकाश महाराज माता को बेटी मानकर पूजा करते हैं। मंदिर में जीजाबाई माता को हर रोज नई-नई पोशाक पहनाई जाती है। नवरात्रि में माता के दरबार में भक्तों की भीड़ होती है।