भारत ने भी डेढ़ साल पहले दुनिया में विकल्प बनने के लिए सेमीकंडक्टर पॉलिसी लाने की कोशिश की थी, लेकिन डील फेल होने के बाद अब नए सिरे से विचार हो रहा है। ऐसे में चीन के परंपरागत प्रतिस्पर्धी ताइवान पर भी भारत की नजर है। क्योंकि दुनिया की सबसे बड़ी सेमीकंडक्टर बनाने वाली ताइवान की कंपनी दुनिया की लगभग 90 प्रतिशत प्रोसेसर चिप बनाती है। जिनका उपयोग स्मार्टफोन और कम्प्यूटर में होता है।
अब भारत, चीन, अमेरिका को समझ में आ रहा है कि चिप तकनीक में किसी एक देश की मोनोपोली आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस व डिजिटल युग में आर्थिक खतरा है। कोरोना कल में जब चिप की आपूर्ति बाधित हुई तो मोटर-कार उद्योग से लेकर मोबाइल उद्योग तक उत्पादन पर बड़ा असर पड़ा था। कई कार कंपनियां कार में लगने वाली आयातित इंटेलिजेंस चिप के अभाव में डिमांड व बुकिंग के बावजूद शोरूम तक वाहनों की आपूर्ति नहीं कर पाई थी। मोनोपोली के चलते ही किसी देश की एक कंपनी पूरे शेयर मार्केट पर हावी हो जाती है।होम टेक्नोलॉजीज की ताजा रिसर्च ने एआई के दौर में अमेरिका और चीन जैसे देशों के बीच चिप को अर्थव्यवस्था में मुद्रा के रूप में आंका है। डेटा प्रबंधन, कम्प्यूटर कनेक्शन, सूचना खुफिया प्रौद्योगिकी, स्वचालित जीपीटी से उठने वाले मुद्दे अब दुनियाभर में होने वाले युद्धों की पृष्ठभूमि बनेंगे। यह आर्थिक और औद्योगिक प्रकृति का युद्ध है, जो शुरू हो चुका है। यह अमेरिका और चीन व कुछ हद तक भारत के बीच ‘व्यापार युद्ध’ होगा। इसी वर्चस्व से वैश्विक राजनीति और देशों के बीच बातचीत नियंत्रित होगी। तकनीकी आत्मनिर्भरता ही दो देशों के बीच भविष्य के सहयोग का आधार तय करेगी। यह युद्ध सेमीकंडक्टर चिप्स के उत्पादन को लेकर है, जो मुख्य रूप से चीन अमेरिका और भारत के बीच त्रिकोणीय प्रतिस्पर्धा का कारण बनेगा।
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