हर्ष के शासनकाल के पश्चात यह भूभाग बहरों के आधिपत्य में आ गया था। इसे भरों के राजा ईश ने इसौली, कूंड़ ने कूड़ेभार तथा अलदे ने अलदेमऊ बसाया था। यहां सभी राजा कन्नौज के गुर्जर प्रतिहारों के अधीन थे। जयचंद के पराभव के पश्चात भर शासक स्वतंत्र हो गए। गहरवार कालीन सिक्के भी गढ़ा के भग्नावशेषों से प्राप्त हुए थे, जो कुड़ेभार रियासत की तत्कालीन भुनेश्वरी देवी के पास सुरक्षित थे। हिसामुद्दीन पहला मुसलमान था जो सुलतानपुर में पहली बार आया था। यहीं से कुशभवनपुर पर मुस्लिम आधिपत्य शुरू हो गया। इसी समय सुलतान के नाम पर कुशभवनपुर सुलतानपुर हो गया।
बताया जाता है कि सन 1248 में दिल्ली के बादशाह पृथ्वीराज चौहान के भाई चाहिरदेव के वंशज बरियार शाह आये। जमुवावा गांव में उन्होंने अपनी गढ़ी बनवाया। बाद में उनके वंशजों ने गोमती नदी के उत्तर भूभाग को अन्य क्षत्रिय परिवारों से छीन ली। सन 1364 ईसवी में मलिक सरवर ख्वाजा ने जौनपुर शर्की सल्तनत की आधारशिला रखी। पी कारनेगी को धोपाप व शाहगढ़ में शर्की के अनेक सिक्के मिले थे। इससे स्पष्ट है कि सुलतानपुर शर्की शासकों के अधीन था। सन 1539-40 में जब शेरशाह सूरी ने हुमायूं को पराजित किया तो वत्सगोत्रीय बरियार शाह के वंशजों में नरवलगढ़ ( अब हसनपुर ) के राजा त्रिलोकचंद थे, जिन्होंने बाबर के समय ही मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया तथा अपना नाम तातारखां रख लिया। अकबर के समय में सुलतानपुर कई मुहालों में बंटा हुआ था।
शिक्षा, साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में सुलतानपुर की अपनी उपलब्धियां हैं। मलिक मोहम्मद जायसी, गुरुदत्त सिंह जैसे पुरातन कवियों की भी यही कर्मस्थली थी। राष्ट्रीय आंदोलन के महान कवि पंडित रामनरेश त्रिपाठी का भी यह गृह जनपद है। प्रगतिवादी कविता व शायरी के सशक्त कवि त्रिलोचन एवं मजरूह सुल्तानपुरी का वास्ता इसी माटी से है। चर्चित कथाकार संजीव, शिवमूर्ति, अखिलेश, अजमल सुल्तानपुरी इसी धरती की उपज हैं। शिक्षा के क्षेत्र में बाबू केएन सिंह ने केएनआईपीएसएस कमला नेहरू तकनीकी संस्थान की स्थापना कर अप्रतिम कार्य किया एवं पंडित राम किशोर त्रिपाठी के प्रयास भी शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण रहे। इन मनीषियों द्वारा स्थापित संस्थाएं जनपद के चतुर्मुखी विकास में मील का पत्थर हैं। सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक महत्व के अनगिनत स्थल जनपद के कोने-कोने में मौजूद हैं, जहां पर अवशेषों लेकर मूर्तियों के रूप में सम्पदा बिखरी पड़ी हैं।