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सुल्तानपुर

वक्त के साथ सुलतानपुर भी बदलता रहा है करवट, जानें- सुलतानपुर का पूरा इतिहास

शिक्षा, साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में सुलतानपुर की अपनी उपलब्धियां हैं…

सुल्तानपुरOct 28, 2018 / 05:12 pm

Hariom Dwivedi

history of sultanpur

वक्त के साथ सुलतानपुर भी बदलता रहा है करवट, जानें- सुलतानपुर का पूरा इतिहास

सुलतानपुर. इतिहास पर जब हम नजर डालें तो सुलतानपुर जिले की कहानी अत्यंत प्राचीन लगती है। भगवान श्रीराम के 2 पुत्र लव और कुश थे। लव को उत्तर कौशल और कुश को दक्षिण कौशल का राज्य मिला था। गोमती नदी के किनारे भौगोलिक रूप से अति सुरक्षित स्थान पर कुश ने अपनी राजधानी बनाई थी। यही नगर कुशभवनपुर या कुशपुर कहलाया। गोमती नदी के तट पर स्थित इस नगर को बाद में सुलतानपुर के नाम से जाना जाने लगा।
कहा जाता है कि इतिहास एवं परम्परा एक दूसरे के पूरक हैं। इस परिपेक्ष्य में सुलतानपुर के इतिहास पर हम जब नजर डालते हैं तो जनपद की कहानी अत्यंत प्राचीन लगती है। गोमती नदी के उत्तरी छोर पर मौजूद कुशभवनपुर के खंडहर आज भी इसकी गवाही दे रहे हैं। भगवान बुद्ध के समय में कौशल का शासक प्रसेनजीत था। कुशपुत्र या केशिपुत्र, कलाम क्षत्रियों के आधिपत्य में फलता-फूलता एक गणराज्य था, जिसकी चर्चा में अंगुत्तर निकाय में व्यापक रूप से की गई है। बौद्ध कालीन पुरासम्पदा जनपद के कई स्थलों पर विद्यमान है। भगवान बुद्ध ने व्यक्ति स्वातंत्र्य का उपदेश यहां पर दिया था।
चीनी यात्री ह्वेनसांग ने इस नगर को कियाशोपोलो माना है। अन्वेषणों से यह आधिकारिक रूप से प्रमाणित हो चुका है कि ह्वेनसांग इसी भूभाग से होकर साकेत गया था। कनिष्क के कार्यकाल सन ( 78 से 102 ईस्वी ) तक में यहां जनपद बौद्ध धर्म का केंद्र था। उसके शासनकाल के सिक्के सन 1907 ईस्वी में ग्राम मोईली तहसील सदर से प्राप्त हुए थे। तहसील लम्भुआ का भदैया बुद्धयान तथा बूधापुर बुद्धयान गांव तत्सम रूप है, जो बौद्ध कालीन संस्कृति का घोतक है। इसी प्रकार इसी तहसील के भीखरपुर का टीला व मूर्ति अत्यंत प्राचीन है। हर्ष के शासनकाल के समय ही चीनी यात्री यहां आया था, तथा केशिपुत्र के विहारों का अवलोकन किया था।
सुलतानपुर आने वाला पहला मुसलमान था हिसामुद्दीन
हर्ष के शासनकाल के पश्चात यह भूभाग बहरों के आधिपत्य में आ गया था। इसे भरों के राजा ईश ने इसौली, कूंड़ ने कूड़ेभार तथा अलदे ने अलदेमऊ बसाया था। यहां सभी राजा कन्नौज के गुर्जर प्रतिहारों के अधीन थे। जयचंद के पराभव के पश्चात भर शासक स्वतंत्र हो गए। गहरवार कालीन सिक्के भी गढ़ा के भग्नावशेषों से प्राप्त हुए थे, जो कुड़ेभार रियासत की तत्कालीन भुनेश्वरी देवी के पास सुरक्षित थे। हिसामुद्दीन पहला मुसलमान था जो सुलतानपुर में पहली बार आया था। यहीं से कुशभवनपुर पर मुस्लिम आधिपत्य शुरू हो गया। इसी समय सुलतान के नाम पर कुशभवनपुर सुलतानपुर हो गया।
अकबर के समय कई मुहालों में बंटा था सुलतानपुर
बताया जाता है कि सन 1248 में दिल्ली के बादशाह पृथ्वीराज चौहान के भाई चाहिरदेव के वंशज बरियार शाह आये। जमुवावा गांव में उन्होंने अपनी गढ़ी बनवाया। बाद में उनके वंशजों ने गोमती नदी के उत्तर भूभाग को अन्य क्षत्रिय परिवारों से छीन ली। सन 1364 ईसवी में मलिक सरवर ख्वाजा ने जौनपुर शर्की सल्तनत की आधारशिला रखी। पी कारनेगी को धोपाप व शाहगढ़ में शर्की के अनेक सिक्के मिले थे। इससे स्पष्ट है कि सुलतानपुर शर्की शासकों के अधीन था। सन 1539-40 में जब शेरशाह सूरी ने हुमायूं को पराजित किया तो वत्सगोत्रीय बरियार शाह के वंशजों में नरवलगढ़ ( अब हसनपुर ) के राजा त्रिलोकचंद थे, जिन्होंने बाबर के समय ही मुस्लिम धर्म स्वीकार कर लिया तथा अपना नाम तातारखां रख लिया। अकबर के समय में सुलतानपुर कई मुहालों में बंटा हुआ था।
सुलतानपुर की अपनी उपलब्धियां
शिक्षा, साहित्य एवं संस्कृति के क्षेत्र में सुलतानपुर की अपनी उपलब्धियां हैं। मलिक मोहम्मद जायसी, गुरुदत्त सिंह जैसे पुरातन कवियों की भी यही कर्मस्थली थी। राष्ट्रीय आंदोलन के महान कवि पंडित रामनरेश त्रिपाठी का भी यह गृह जनपद है। प्रगतिवादी कविता व शायरी के सशक्त कवि त्रिलोचन एवं मजरूह सुल्तानपुरी का वास्ता इसी माटी से है। चर्चित कथाकार संजीव, शिवमूर्ति, अखिलेश, अजमल सुल्तानपुरी इसी धरती की उपज हैं। शिक्षा के क्षेत्र में बाबू केएन सिंह ने केएनआईपीएसएस कमला नेहरू तकनीकी संस्थान की स्थापना कर अप्रतिम कार्य किया एवं पंडित राम किशोर त्रिपाठी के प्रयास भी शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण रहे। इन मनीषियों द्वारा स्थापित संस्थाएं जनपद के चतुर्मुखी विकास में मील का पत्थर हैं। सांस्कृतिक एवं पुरातात्विक महत्व के अनगिनत स्थल जनपद के कोने-कोने में मौजूद हैं, जहां पर अवशेषों लेकर मूर्तियों के रूप में सम्पदा बिखरी पड़ी हैं।
वीडियो में देखें- क्या बोले इतिहासकार जेपी त्रिपाठी….

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