आईपीएस प्रीति चंद्रा : सुबह जल्दी उठकर बच्चों को तैयार करना, स्कूल जाने तक पूरा समय बच्चों को देते हैं। शाम को कोशिश करते हैं कि एक घंटा बच्चों के साथ बिताए, बैलेंस रखते है। वीकेंड पर बच्चों को समय देने की कोशिश करते हैं। डिफिकल्ट जरूर है, लेकिन मां होने के नाते कोई मुश्किल है, मैनेज हो जाता है।
आईपीएस प्रीति चंद्रा : मां की जिम्मेदारी हर जिम्मेदारी से बड़ी है। ऑफिशियल जिम्मेदारी का समय तो होता है, उसका शेड्यूल तो है, लेकिन मां की जिम्मेदारी का कोई शेड्यूल नहीं है, वह 24 घंटे की जिम्मेदारी है। कई बार ऐसा हो जाता है, खुद बीजी है, बच्चो के साथ रहना जरूरी है, तब सैंकेंड पेरेंट्स मैनेज करते हैं। बच्चों के मामले में सबसे बड़ा सपोर्ट मेरे पति हैं।
आईपीएस प्रीति चंद्रा : मैं सोचती हूं, हम मां भी है, वर्किंग वूमन भी है, बहू भी है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं से अपेक्षाएं अधिक होती है। जबकि अवसरों की उतनी समानता नहीं मिल पाती है, जितनी मिलनी चाहिए। मेल डोमिनेंटिंग सोसाइटी में पुरुषों की तुलना में महिलाओं के साथ लोगों का रवैया उतना अच्छा नहीं होता है। मां के रूप में, एक बेटी और एक बहू के रूप में महिला अधिक काम करती है। महिला एक मल्टीटास्किंग होते हुए भी उसे प्रोपर रिस्पेक्ट नहीं मिल पाती है। महिलाओं को अधिक मेहनत और काम करके अपने आप को साबित करना होता है।
आइपीएस प्रीति चंद्रा : मां के लिए अपने बच्चे की परवरिश व उनकी खुशी के साथ बच्चों को संस्कार देने से ज्यादा बड़ी कोई चीज नहीं है। मां का रोल, ऐसा है कि वह हर चिंता, हर परेशानी व हर तकलीफ को भूला देता है। मैं चाहे कितनी ही परेशानी में हूं, पर जब मैं देखती हूं कि मैं दो बेटी की मां हूं तो सब भूल जाती हूं। और जब घर आकर दोनों बेटियों को देखती हूं तो लगता है, यही मेरे लिए संसार है।