उन्हें जंगल छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। ऐसे मे 26 गांवों ने खुला ऐलान कर दिया है। गोली खा लेंगे पर जंगल नहीं छोड़ेंगे। बेदखली के विरोध में गुरुवार को ये सभी जिला मुख्यालय गरियाबंद में जुटे। गांधी मैदान में धरना देकर प्रदर्शन किया।
Sitanadi Tiger Reserve: जिला पंचायत सभापति का बयान
सभा को संबोधित करते हुए जिला पंचायत सभापति लोकेश्वरी नेताम ने कहा, उदंती-सीतानदी में हमें न तो केंद्र सरकार ने बिठाया है, न राज्य सरकार ने। हमारे पूर्वजों ने खून-पसीना एक कर यहां गांव बसाए हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी हम जंगलों की रखवाली करते आए हैं।
वन्य जीव-जंतु हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। इन्हें छोड़कर हम कैसे जा सकते हैं? जिला पंचायत उपाध्यक्ष संजय नेताम ने कहा, एनटीसीए का बेदखली वाले आदेश ने जनजातियों को चिंता में डाल दिया है। जिन्हें हमने कुर्सी पर बिठाया, आज वही सरकार हमें गांव छोड़ने कह रही है। गोली खा लेंगे पर जंगल नहीं छोड़ेंगे।
जरूरत पड़ी तो दिल्ली तक करेंगे पदयात्रा
जनजाति विरोधी विस्थापन नीति के विरोध में जरूरत पड़ी तो दिल्ली तक पदयात्रा भी करेंगे। सभा को टीकम नागवंशी, तिलकचंद मरकाम, अर्जुन सिंह नायक ने भी संबोधित किया। मंच का संचालन पूरन सिंह मेश्राम, मधु सिंह ओटी, मन्नु लाल नेताम ने किया।
Sitanadi Tiger Reserve इस दौरान करण सिंह नाग, दीपक मंडावी, खेल सिंह मरकाम, गोपाल सिंह, गणेशराम यादव, खम्मन राम, कैलाश सोरी, ताराचंद नागवंशी, बैजनाथ नेताम, हरीश नेताम, बरखा, राधा बाई नेताम, मनमती नाग, प्रेमशिला कपिल, लालो बाई, भीम आर्मी जिलाध्यक्ष राम सिंह घृतलहरे, बहुजन समाज से राकेश भारती समेत उदंती सीतानदी के 26 गांवों के 2000 से ज्यादा ग्राम सभा सदस्य मौजूद रहे।
सरकार का पक्ष
एनटीसीए ने हाल ही में देश के 19 राज्यों को पत्र लिखकर टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में बसने वाले गांवों से ग्रामीणों को प्राथमिकता से हटाने कहा। एडिशनल डायरेक्टर जनरल ऑफ फॉरेस्ट (प्रोजेक्ट टाइगर) जीएस भारद्वाज ने भी एक पत्र में इसे बाघों के संरक्षण मेें खतरा बताते हुए चिंता जाहिर की।
असल में टाइगर रिजर्व का कोर जोन वो इलाका होता है, जहां मानव आबादी बसाने, शिकार और वनोपज इकट्ठा करने जैसी गतिविधियां प्रतिबंधित हैं। एनटीसीए के अनुसार, 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर के साथ शुरू हुए प्रयासों के बावजूद 64,801 परिवारों वाले 591 गांव अभी भी कोर जोन में रहते हैं।
इससे मानव-वन्य जीवों के बीच संघर्ष बढ़ने के साथ शिकार का भी खतरा बढ़ जाता है। भारत में बाघों को बचाने के लिए इसे जरूरी माना गया है।
समुदायों का तर्क
एनटीसीए अनुचित दबाव बना रहा है। राज्य सरकार को अवैध गतिविधियों में संलिप्त होने के लिए मजबूर करने वाला आदेश है। ग्रामीणों के मुताबिक, बेदखली का आदेश वन समुदायों के अधिकारों की रक्षा करने वाले कई कानूनों का सीधे तौर पर उल्लंघन है। उन्होंने इसे वन अधिकार अधिनियम, भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास में उचित मुआवजे और पारदर्शिता के अधिकार का उल्लंघन बताया।
पुनर्वास अधिनियम (एलएआरआर), अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम का भी उल्लंघन। फैसले से वन निर्भर समुदायों, अनुसूचित जनजातियों और बाघ अभयारण्यों में रहने वाली अन्य जनजातियों में संघर्ष की आशंका।
प्रदेश के एक वरिष्ठ पर्यावरणविद् ने नाम न छापने की शर्त पर एनटीसीए के कार्यों का बचाव करते हुए कहा, कोर जोन में नियम पहले से तय हैं। एनटीसीए द्वारा हाल ही में निकाला गया आदेश राज्य सरकारों को रिमाइंडर मात्र है।
Sitanadi Tiger Reserve उन्होंने स्थानांतरण की प्रक्रिया को स्वैच्छिक बताते हुए इस बात पर भी जोर दिया कि गांव खाली कराने से पहले लोगों के अधिकार सुरक्षित हों। कानूनी ढांचे का पालन किया जाए।