सिंचाई के साधन वाले किसान अपना रहे तीसरी फसल
कृषक जहान सिंह ग्राम चौका, श्यामलिया अहिरवार कदारी, नंदकिशोर लक्ष्मीप्रसाद पटेल बसारी, रामअवतार कुशवाहा गुरैया सहित अनेकों किसानों ने ग्रीष्म कालीन मूंग की फसल बोई है। जो मात्र 65 से 75 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। जिन खेतों में गेहूं की बुवाई की गई थी उन्हीं खेतों में मूंग फसल लेने से उर्वरकों की आवश्यकता भी कम हो जाती है, साथ ही कीट बीमारी तथा नीदा का प्रकोप नहीं होने से उत्पादन भी अधिक प्राप्त होता है। जिले में पानी की कठिनाई होने के उपरान्त भी किसानों द्वारा फसल की सिंचाई नवीन पद्धति स्प्रिंकलर, रेन गन के माध्यम से की जा रही है। बाजार में मूंग फसल की कीमत अधिक होने से भी किसान ग्रीष्म कालीन फसलों के उत्पादन की ओर प्रेरित हो रहे हैं।
कृषि विभाग ने बताए फायदे
कृषि विभाग ने भी सिंचित क्षेत्रों के लिए ग्रीष्मकालीन मूंग को फायदे का सौदा बताया है, इसकी बड़ी वजह फसल में रोग-बाधाएं कम आना और उन्नत किष्म के बीजों से अधिक उत्पादन की प्रबल संभावना रहती है। जिले में इस साल ग्रीष्मकालीन मूंग 543 हेक्टेयर में बोई गई है। मूंग किसानों द्वारा उगाई जाने वाली दलहनी फसलों में महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इसमें 24 प्रतिशत प्रोटीन के साथ रेशे एवं लौह तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। मूंग की जल्दी पकने वाली एवं उच्च तापमान को सहन करने वाली प्रजातियों के विकास के कारण भी मूंग की खेती लाभदायक हो रही है। फसल कृषि विभाग के अनुसार ग्रीष्मकालीन मूंग की उत किस्में पूसा विशाल, विराट, विराट-55, के-85 है। उक्त किस्में 65 से 75 दिन में तैयार हो जाती है, यदि सब ठीक रहा तो उत्पादन 12 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बताया गया है, जबकि खरीफ सीजन में 6 से 7 क्विंटल तक ही प्रति हैक्टेयर उत्पादन है।
इनका कहना है
यह बात सही है कि ग्रीष्मकालीन मूंग में रोग-बाधाएं कम लगती हैं और उत्पादन अच्छा होता है। जिन क्षेत्रों में सिचाई के पर्याप्त साधन हैं और आसानी से पानी की उपलब्धता है। वहां पर किसानों को ग्रीष्मकालीन मूंग के लिए प्रोत्साहित किया गया है। ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल को बढ़ावा देने के लिए विभाग किसानों को जागरुक कर रहा है।
डॉ. सुरेश पटेल, उप संचालक, कृषि