अनाथ बच्चों को देखरेख और पढ़ाई की व्यवस्था के लिए जनसहयोग से स्टाफ की व्यवस्था भी की गई है वहीं भोजन बनाने के लिए अलग से व्यवस्था की गई है। आश्रम में रह रहे बच्चों ने बताया कि आश्रम में उन्हें घर परिवार जैसी सुविधाएं मिल रही हैं जिसकी बदौलत वे अपनी शिक्षा बेहतर तरीके से पूरी कर रहे है। हालांकि अनाथ आश्रम में दिव्यांगों की संख्या को देखते हुए पर्याप्त कमरे व अन्य सुविधाऐं नहीं है लेकिन इसके बावजूद दिव्यांग आश्रम में मिल रही सुविधाओं को पर्याप्त मानते हैं। एक दिव्यांग ने बताया कि लोगों के सहयोग से ही उसका बीएड करने का सपना पूरा हो पाया है। फिलहाल आश्रम को संचालित करने वाली कमेटी के अध्यक्ष डॉ. रामकिशन रिवाडिय़ा को बनाया गया है। उन्होंने बताया कि बच्चे अपनी-अपनी रुचि के अनुसार काम भी सीख रहे हैं।
रायसिंहनगर में लंबे समय तक रहे संत आकाश मुनि ने इस आश्रम की स्थापना की थी। बताया जाता है कि आकाशमुनि ने अपने गुुरु लाभदास के दिव्यांगों के प्रति विशेष प्रेम से प्रेरणा लेकर इस आश्रम की स्थापना की थी। 1992 में उन्होंने करीब एक लाख रुपए की लागत से भवन तैयार करवाकर इस आश्रम का संचालन शुरू करवाया जो अब काफी विस्तार ले चुका है।
आश्रम के विस्तार की जरूरत
फिलहाल आश्रम आठ कमरों में संचालित हो रहा है जिसमें 30 दिव्यांगों के अलावा स्टाफ और भोजन बनाने वाले के परिवार के साथ अन्य काम भी निपटाए जाते हैं। आश्रम में प्रवेश के लिए बड़ी संख्या में दिव्यांग एवं अनाथ आवेदन कर रहे हैं लेकिन आश्रम के पास जगह और कमरों की कमी सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। वर्तमान में संस्था में भूपेन्द्र थोरी संरक्षक, डॉ. रामकिशन रिवाडिय़ा अध्यक्ष और जितेन्द्र गुप्ता सचिवीय दायित्वों का निर्वहन कर रहे हैं।