श्रीगंगानगर जिले की सरहद पर स्थित यह स्टेशन अब सीमा सुरक्षा बल (BSF) की निगरानी में है। सुरक्षागत कारणों से यहां रेलवे ट्रेक उखाड़ लिया गया, लेकिन उसके निशां बाकी हैं। करीब सौ साल से ज्यादा पुराने रेलवे टिकटघर के जीर्णोद्धार का काम अब बीएसएफ की ओर से करवाया जा रहा है। ऐतिहासिक जगह होने के कारण यहां पर्यटन की संभावना है। कुछ इसी तरह की उम्मीद बीएसएफ को भी है।
बीकानेर रियासत की व्यापारिक मंडी भारत के विभाजन से पहले हिन्दुमलकोट बीकानेर रियासत की महत्वपूर्ण व्यापारिक मंडी थी। यहां के व्यापारिक रिश्ते पाकिस्तान के बहावलपुर, कराची, लाहौर, पेशावर और क्वेटा से लेकर अफगान, काबुल व कंधार तक थे। चना व्यापार के मामले में हिन्दुमलकोट की अलग पहचान थी। अंग्रेजी शासन काल में बम्बई और दिल्ली को कराची से जोडऩे वाले तीन रेल मार्गों में से एक रेलमार्ग दिल्ली से पाकिस्तान के बहावलपुर जाता था, जो बठिण्डा और हिन्दुमलकोट होकर गुजरता था।
सुरक्षागत कारणों से उखाड़ा ट्रेक भारत-पाक के बीच 1965 के युद्ध के बाद सुरक्षागत कारणों के मद्देनजर पाकिस्तान क्षेत्र में रेल पटरियों को उखाड़ कर ट्रेक को समतल कर दिया। इसके बावजूद भारतीय सीमा में बठिण्डा-दिल्ली वाली रेलगाड़ी वर्ष 1969 तक आवागमन करती रही।
वर्ष 1970 में रेलवे स्टेशन को भारत-पाक अंतरराष्ट्रीय सीमा से तीन किलोमीटर दूर स्थानांतरित कर दिया, लेकिन वहां बने भवन व टिकटघर आज भी अतीत की कहानी कहते हैं। यह जानकारी बीएसएफ चौकी पर लगाए गए सूचना पट्ट पर भी प्रदर्शित की गई है।
पर्यटन की है संभावनाएं
हिन्दुमलकोट ऐतिहासिक जगह रही है। यहां भारत-पाक सीमा होने के कारण पर्यटक आते रहते हैं। इसके अलावा पुराना रेलवे स्टेशन उखाड़े गए ट्रेक के अवशेष आदि भी पर्यटकों को अतीत से रूबरू करवाते हैं। हिन्दुमलकोट आजादी से पहले प्रमुख व्यापारिक मंडी थी, उसके अवशेष भी आज मौजूद हैं। इसके अलावा बीएसएफ जवानों ने सीमा चौकी पर पर्यटकों के लिए पार्क, स्वीमिंग पुल तथा झूले आदि भी लगाए हैं।