अस्पताल खुद फैला रहा संक्रमण… सिस्टम को इलाज की दरकार
जिले का सबसे बड़ा अस्पताल, जहां दूर-दूर से मरीज इलाज के लिए आते हैं। मगर सुविधाओं के नाम पर उन्हें संक्रमण दिया जा रहा है। अस्पताल के शौचालय इतने गंदे है कि इनमें प्रवेश तो क्या कोई इनके पास से गुजरे भी नहीं।
अलवर. जिले का सबसे बड़ा अस्पताल, जहां दूर-दूर से मरीज इलाज के लिए आते हैं। मगर सुविधाओं के नाम पर उन्हें संक्रमण दिया जा रहा है। अस्पताल के शौचालय इतने गंदे है कि इनमें प्रवेश तो क्या कोई इनके पास से गुजरे भी नहीं। यह हाल तो तब है, जब यहां सफाई के नाम पर सालाना लाखों रुपए खर्च किया जा रहा है, लेकिन प्रभावी मॉनिटरिंग के अभाव में इनके हाल खराब पड़े हैं। अस्पताल में सफाई का ठेका हो रखा है। इसमें झाडू-पोछा के अलावा के शौचालय की सफाई व्यवस्था भी शामिल है, लेकिन अस्पताल प्रशासन कभी इस बात की जहमत तक नहीं उठाता कि यह जांच लें कि सफाई व्यवस्था सही है या नहीं। शौचालय साफ हो रहे हैं या नहीं। हालत यह है कि यह शौचालय ही संक्रमण फैला रहे हैं। अस्पताल के सभी शौचालय गंदगी से अटे पड़े हैं। यही नहीं भर्ती वार्डों में भी दुर्गंध के कारण मरीज व परिजन बेहाल हैं, लेकिन जिम्मेदार अधिकारी अस्पताल की अव्यवस्थाओं को लेकर आंखे मूंदे हुए हैं।
विभाग ने स्वच्छता की दिशा में नवाचार करते हुए 14 फरवरी को शौचालयों पर क्यूआर कोड लगाए थे। खुद जिला कलक्टर आशीष गुप्ता ने इस नवाचार की शुरुआत की थी। मकसद यही था कि गंदगी मिलने पर कोई भी व्यक्ति क्यूआर कोड को स्कैन कर इसकी शिकायत कर सके, लेकिन प्रभावी मॉनिटरिंग के अभाव में आमजन को इसका कोई लाभ नहीं मिल सका है। जबकि अस्पताल में 85 जगहों पर यह क्यूआर कोड लगे हुए हैं।
शौचालयों के गेट पर लगे क्यूआर कोड को स्कैन कर मरीज व उनके परिजन, चिकित्सक व स्टाफ सहित कोई भी व्यक्ति गंदगी का फोटो व जगह की जानकारी अपलोड कर गूगल फॉर्म के माध्यम से गंदगी की शिकायत सफाई शाखा व अस्पताल प्रशासन को ई-मेल के जरिए भेज सकता है, लेकिन जानकारी व जागरुकता के अभाव में क्यूआर कोड के माध्यम से अभी तक गंदगी की अभी तक सिर्फ 45 शिकायतें ही मिली है। इन पर भी संबंधित अधिकारी-कर्मचारियों की ओर से कोई ध्यान नहीं दिया गया।
स्वच्छता अभियान को चिढ़ा रहे
पीएम नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता अभियान की शुरुआत की थी। इसके तहत पूरे देशभर में करोड़ों शौचालयों का निर्माण किया गया, लेकिन अलवर का जिला अस्पताल मानों इस अभियान को असफल करने में लगा हो। शिशु और महिला अस्पताल में भी कमोबेश यही हाल हैं।