पहले 80 फीसद चले जाते थे विदेश
अस्सी व नब्बे के दशक में भारतीय प्रोफेशनल्स उच्च वेतन और अनुकूल माहौल की तलाश में यूके, यूएस **** अन्य विकसित देशों की ओर रुख करने लगे थे, लेकिन आईटी क्रांति, डॉट कॉम बबल्स और विदेशों में अवसरों में कमी की वजह से यह ट्रेंड अब बदलता दिख रहा है। अब ब्रेन ड्रेन, ब्रेन गेन में बदल गया है। 2017 में देश के आईआईटीज के 10,000 छात्रों में से करीब 200 छात्र ही जॉब की तलाश में देश से बाहर गए। इनमें मुंबई आईआईटी के 50, दिल्ली के 40, खडग़पुर से 25, कानपुर से 19, मद्रास से 13, रुड़की से 17 व गुवाहाटी के ५ छात्र शामिल हैं। यह ट्रेंड चौंकाने वाला है कि हमारे प्रोफेशनल यूथ आखिर अब विदेश जाना क्यों पसंद नहीं कर रहे। आईआईटी दिल्ली के निदेशक वी रामगोपाल का कहना है कि 20 साल पहले की तुलना में अब प्रोफेशनल्स का बहुत ही छोटा हिस्सा विदेश जा रहा है। यह आम धारणा के विपरीत है। जबकि २० साल पहले तक आईआईटीज के 80 फीसद छात्र विदेश चले जाते थे।
ऑल आईआईटी प्लेसमेंट कमेटी के संयोजक कौस्तुभ मोहंती का कहना है कि जब हमने कंपनियों के संचालकों से पूछा कि ब्रेन ड्रेन से रिवर्स ब्रेन ड्रेन की स्थिति क्यों हैं तो उन्होंने बताया कि अब काम के प्रोफाइल बदल गए हैं। अहम सवाल यह है कि अंतरराष्ट्रीय नौकरियों के लिए बहुत कम आईआईटियंस ने आवेदन किया। छात्रों का बड़ा तबका अब भारत से बाहर नहीं जाना चाहता।
निजीकरण और वैश्वीकरण की नीतियों से प्रवासी भारतीय वापस लौटे और मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसी योजनाओं का फायदा उठाकर देश में आईटी और डिजिटल कारोबार को बड़े पैमाने पर बढ़ावा दिया, जिसे अब डॉटकॉम बबल्स के नाम से जाना जाता है।
वैश्विक स्तर पर रोजगार और कारोबार के क्षेत्र में बदले परिदृश्य ने भी इस मामले में अहम भूमिका निभाई है। 2008 में वैश्विक मंदी, ९/११ की घटना, विदेशों में भारतीयों के साथ अपमानजनक व्यवहार ने ही प्रवासी भारतीयों को अपनी जड़ों की ओर लौटने के लिए प्रेरित किया।
केंद्रीय विज्ञान और तकनीक मंत्रालय के अनुसार, 3 साल में 1,000 से अधिक वैज्ञानिक वापस लौट चुके हैं। अब इनकी विशेषज्ञता का लाभ हमें मिलने लगा है। शोध व अनुसंधानपरक योजनाएं
प्रधानमंत्री छात्रवृत्ति योजना और उच्चतर आविष्कार योजना के तहत अनुसंधानरत छात्रों को प्रति माह 75,000 से 1,00,000 रुपए देने की योजन शामिल है। राष्ट्रीय उच्च शिक्षा अभियान के तहत ग्रामीण क्षेत्रों के महाविद्यालयों को दो करोड़ और विश्वविद्यालयों को 20 करोड़ रुपए आधारभूत सुविधाओं के विकास के लिए मुहैया कराने की व्यवस्था। टेक्विप योजना के अंतर्गत तकनीकी शिक्षा के बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देना है। इसके अंतर्गत उत्तर-पूर्व के संस्थानों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा।
भारतीय प्रोफेशनल्स के अनुभवों का लाभ देश के सभी क्षेत्रों के लोगों तक पहुंचाने के लिए उत्तर-पूर्व भारत की ओर ध्यान दिया जा रहा है। इसके तहत प्रोफेनल्स को सेवन सिस्टर्स स्टेट में काम के बेहतर अवसर मुहैया कराए जा रहे हैं, ताकि देशभर में विकास के समान अवसर और सुविधाएं मुहैया कराना संभव हो सके।
दो अक्टूबर 2016 को प्रवासी भारतीय केन्द्र का उद्घाटन करते हुए पीएम नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि प्रवासी भारतीयों को एक संख्या के बजाय एक ताकत के रूप में (ब्रेन ड्रेन से ब्रेन गेन) बदला जा सकता है। वे एक मजबूत भारत मिशनों के लिए बड़ी ताकत साबित हो सकते हैं। इस सोच को आगे बढ़ाते हुए कैलिफोर्निया में भारतीय-अमरीकियों से कहा था कि ब्रेन ड्रेन ब्रेन डिपॉजिट है, जो अब देश के काम आएगा और इसमें सभी को सहयोग करने की जरूरत है।
अत्यधिक कुशल और शिक्षित युवाओं को बेहतर वेतन और बेहतर कार्य परिवेश के लिए देश छोड़कर विदेश जाने की चिंताजनक स्थिति होती है। रिवर्स ब्रेन ड्रेन…
बेहतर अवसरों की तलाश में विदेशों से प्रवासी भारतीयों का वापस लौटने की प्रक्रिया है। यह बौद्धिक और आर्थिक दृष्टि से लाभकारी होता है।
देश के अंदर प्रशिक्षित, विदेशी पेशेवरों की संख्या में वृद्धि करने के लिए बेहतर वेतन, उपकरण, अनुकूल माहौल और रोजगार के अधिक अवसर अपने हित में पैदा करना।