राख उड़ेगी इक पल में,
यार-दोस्त तेरे सगे-सम्बन्धी,
रो-रोकर नीर बहाएंगे,
जो तुझसे लिपटे जाते थे,
वही खौफ खाएंगे,
सांस तन से निकल गई तो,
जग में रखइया कोई नहीं,
सांसों की माला टूट गई तब,
जोडऩे वाला कोई नहीं।
जिनको आज बनाने में,
घर हो या महल-दुमहले,
सभी यहीं रह जाएंगे,
संग में तेरे कफन चलेगा,
संग में चलैया कोई नहीं,
सांसों की माला टूट गई तब,
जोडऩे वाला कोई नहीं। यारे-प्यारे सगे-सम्बन्धी,
जल्दी तुझे उठाएंगे,
ले जाकर तुझको बन्दे,
अग्नि में वो जलाएंगे,
कपाल क्रिया तेरी होगी,
‘शकुन’ तुझको बचैया कोई नहीं,
सांसों की माला टूट गई तब,
जोडऩे वाला कोई नहीं।।