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अब मर्द भी खाएंगे गर्भनिरोधक गोलियां, कामयाब हुआ परीक्षण

इन गोलियों की वजह से परिवार नियोजन की जिम्मेदारी पुरुषों पर भी बराबर रूप से होगी।

Mar 20, 2018 / 04:01 pm

Navyavesh Navrahi

garbh nirodhak medicine

नई दिल्ली। परिवार नियोजन के लिए अभी तक महिलाएं ही गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती थी, लेकिन अब पुरुष भी ये गोलियां ले सकेंगे। सुनने में ये बात भले ही अजीबन लगे, मगर अमेरिका में हुए शोध में इस बात की पुष्टि की गई है। पुरुषों के लिए बनाई गई इस मेल पिल्स को डिमीथैंड्रोलोन अनडेकेनोट (डीएमएयू) नाम दिया गया है।

वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में मेडिसिन की प्रोफेसर स्टेफनी पेज के मुताबिक डीएमएयू भी एंड्रोजन (पुरुष हार्मोन) की तरह टेस्टोस्टेरोन और प्रोजेस्टिन की प्रक्रिया को जोड़ती है। पुरुषों को यह गोली रोजाना एक बार खानी होगी।

तीन समूहों में किया गया परीक्षण
पुरुषों के लिए बनाई गई ये गर्भनिरोधक गोलियां कितनी सही है इस बात का परीक्षण 100 लोगों के तीन समूह में किया गया। इसमें करीब 18 से 50 वर्ष के लोगों को शामिल किया गया था। इन पर परीक्षण करने से पहले पूर्णरूप से इनके स्वास्थ्य की जांच की गई थी। इसके बाद इन्हें 100, 200 और 400 एमजी की खुराक दी गई।

खून की जांच में हुई पुष्टि
डीएमएयू गर्भ निरोधक के तौर पर कितनी कामयाब रही इस बात की पुष्टि उन समूहों के व्यक्त्यिों का ब्लड टेस्ट कर के पता चला। टेस्ट में सामने आया कि 400 एमजी की खुराक का सेवन करने वालों में गर्भ धारण करने के लिए जिम्मेदार हार्मोन्स के स्तर में बहुत कमी आई है। इस परीक्षण में पाया गया कि इस दवाई के सेवन से उस समूह के पुरुषों के शरीर में टेस्टोस्टेरोन और शुक्राणु काफी कम मात्रा में बने हैं।

इनकी ये है राय
अमरीकी यूनिवर्सिटी ऑफ कंसास मेडिकल सेंटर के प्रजनन जीव वैज्ञानिक जोसफ ताश का कहना है,“यदि कोई शुक्राणु नहीं हो तो अंडाणु भी विकसित नही हो सकता।” इसके अलावा वोलवरहैम्पटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने भी इन गोलियों को बतौर गर्भ निरोधक एक बेहतर विकल्प बताया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक तेजी ये दवाई बहुत जल्द ही शरीर में पहुंच कर प्रोटेक्शन का काम करते हैं। इसलिए इस दवाई को गर्भ निरोधक के तौर पर सेक्स से कुछ मिनट पहले भी लिया जा सकता है।

पहले भी हुई थी रिसर्च
पुरुषों के लिए गर्भ निरोधक दवाई बनाने की कोशिश बहुत पहले से चल रही थी। अनचाहे गर्भ से छुटकारा पाने के लिए शोधकर्ता दो फॉर्मूले पर काम कर रहे थे। इसमें पहला सिद्धांत एच2-गैमेनडैजोल का था और दूसरा जेक्यू 1 मॉलिक्यूल। इसकी रिसर्च में समाने आया था कि एच2-गैमेनडैजोल शुक्राणु को पूरी तरह से विकसित नहीं होने देगा। जबकि गर्भ धारण करने पर अपरिपक्व शुक्राणु टेस्टिस में प्रवेश करने के बाद एक पूरा आकार ले लेता है।

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