कौसर बताती हैं कि शुरुआत में उनके पति को बेटियों का खेलना पसंद नहीं था, लेकिन बेटियों का जूनून देखकर वे भी सहयोग करने लगे और कभी बेटियों को खेलने से नहीं रोका। कौसर हमेशा अपनी बेटियों का हौसला बनकर उनके साथ खेल प्रतियोगिताओं में जाती हैं। कई बार साथ नहीं जा पाईं, तो अकेले जाने से भी नहीं रोका। वे कहती हैं कि दोनों बेटियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक खेलते हुए देखना चाहती हूं। पति वहीद एक निजी अस्पताल में इलेक्ट्रिशियन हैं, लेकिन अब वह बेटियों के खेलों में हरसंभव मदद करते हैं। इस मां की हिम्मत ने अन्य लोगों की सोच को भी बदला है। अब वे भी इन बेटियों का हौसला बढ़ाने लगे हैं।
कौसर का मानना है कि बेटियों को भी आसमां छूने का पूरा अधिकार है। उनके बढ़ते कदमों को रोकना उचित नहीं है। परिस्थितियों की वजह से मुझे पढ़ाई और खेल को बीच में ही छोडऩा पड़ा, लेकिन अपनी बेटियों के साथ ऐसा नहीं होने देना चाहती। महिला में अगर इच्छाशक्ति और कुछ कर दिखाने का जूनुन हो तो वह अपने सपनों को किसी भी रूप में पूरा कर सकती है। मैं बेटियों को उनके हिस्से का आसमां देकर उनके सपनों को साकार कर रही हूं।