उदयपुरवाटी पहाड़ी क्षेत्र की फूलगोभी ने बनाई पहचान
उदयपुरवाटी के पहाड़ी क्षेत्र के गांवों में फूलगोभी मुख्य फसल का रूप लेती जा रही है। नवलगढ़ के आस-पास के क्षेत्र में भी बड़े पैमाने पर फूलगोभी की खेती हो रही है। खेती-बाड़ी से जुड़े एडवोकेट मोतीलाल सैनी ने बताया, कभी जौ, गेंहू व बाजरे की फसल पर आश्रित किसान अब फूल गोभी की खेती से मोटा मुनाफा कमा रहे हैं।
उदयपुरवाटी पहाड़ी क्षेत्र की फूलगोभी ने बनाई पहचान
प्रति बीघा आठ हजार खर्चा
भागीरथ मल सैनी सहित बहुत से किसानों ने बताया, दो हजार से तीन हजार में एक क्यारी बीज के रूप मेंं गोभी की पौध आती है। इसके बाद एक बीघा में पौध रौपण किया जाता है। इसमें आठ हजार रुपए तक खर्च आता है और लगभग 20 सें 30 क्विंटल पैदावार होती है। 60 दिन में तैयार होने वाली इस फसल से मंडियों में शुरुआत में 40 से 50 रुपए प्रतिकिलो के हिसाब से मिल जाते हैं।
पहाड़ों की देसी फूल गोभी की यहां मांग
यहां की देसी स्वाद रखने वाली फूल गोभी की मांग अधिक है। सब्जी के व्यापारी रूड़ मल सैनी नीमकाथाना सहित बहुत से किसानों व व्यापारियों ने बताया, यहां उगाई जाने वाली गोभी दिल्ली, जयपुर, डीडवाना, हरियाणा में गुरूग्राम, हिसार, जयपुर, सीकर की मंडियों में जाती है।
इनका कहना है
कृषि पर्यवेक्षक पचलंगी पूरण प्रकाश यादव का कहना है, फूलगोभी की पौध पहले झुंझुनूं जिले के खेतड़ी कस्बे व करमाड़ी गांव की प्रसिद्ध थी, अब उदयपुरवाटी व नीमकाथाना के किसानों द्वारा तैयार की गई पौध की मांग बढ़ गई है।
हर साल बढ़ रहा रकबा
जिले में फूलगोभी का रकबा हर साल बढ़ रहा है। जहां पहले गांवों मे दो -चार क्यारी सब्जी बोई जाती थी, अब बीघा के हिसाब से बुआई होती है। इसमें लागत कम मुनाफा अधिक होता है।
– शीशराम जाखड़, सहायक निदेशक झुंझुनूं
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