फ्लाइ ऐश डैम के टूटने से जानमाल के प्रभावित होने का पहला मामला है। इससे पहले के हादसों में आर्थिक और पर्यावरणीय क्षति ही सामने आई थी। इस बार अब तक तीन शव बरामद किए जा चुके हैं। जबकि तीन लोग अभी भी लापता हैं। जिनकी तलाश जारी है।
इस हादसे और इसे लेकर मचे बवाल के बाद भी अभी खतरा टला नहीं है। बल्कि जर्जर आधा दर्जन फ्लाइ ऐश डैम कभी भी ऐसी ही तबाही मचा सकते हैं। कलेक्टर केवीएस चौधरी ने सासन पॉवर के सीइओ को दिए गए नोटिस में भी इस बात का जिक्र किया है कि उसके दूसरे फ्लाइ ऐश डाइक के भी टूटने की आशंका जताई है। कंपनी के हर्रहवा ऐश डैम में भी दरारें देखी गई हैं। वहीं, एनटीपीसी के ऐश डैम भी जर्जर हैं जिनसे लगातार पानी का रिसाव होता रहा है। फिलहाल अभी उसे तात्कालिक तौर पर दुरुस्त कर लिया गया है।
रिहंद डैम के प्रदूषण का मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया है। अधिवक्ता अश्वनी दुबे द्वारा पूर्व से दायर याचिका में यह मामला उठाया गया है, जिसमें कहा गया है कि सिंगरौली रीजन के पॉवर प्लांट और कोल माइंस कंपनियां खतरनाक रसायन युक्त मलबा रिहंद में पहुंचा रही हैं। जिन्हें रोका जाए और कंपनियों की जिम्मेदारी तय करके रिहंद बांध की सफाई कराई जाए। दुबे ने बताया कि यह याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।
मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के साझे की परियोजना रिहंद डैम पर पेयजल के लिए प्रदेश के सिंगरौली व उत्तर प्रदेश के सोनभद्र सहित अन्य जिलों के करीब 30 लाख लोग निर्भर हैं। डैम में राख के साथ लेड, आर्सेनिक व मरकरी जैसे खतरनाक रसायन जांच कमेटियों को मिले थे।
जस्टिस राजेश कुमार की अध्यक्षता में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा गठित जांच कमेटी की रिपोर्ट में भी सिंगरौली रीजन और रिहंद बांध के प्रदूषण की भयावहता को उजागर किया गया है। कमेटी ने इस रीजन के लिए एक फ्यूचर प्लान भी तैयार किया गया है। जिसमें रिहंद बांध में उद्योग का मलबा जाने से रोकने के लिए कड़े एक्शन प्लान की सिफारिश की गई है।
मजिस्ट्रेटियल जांच के लिए कमेटी गठित की जा चुकी है। जिसने अपना काम शुरू कर दिया है। जांच में सभी तरह के नुकसान को शामिल किया गया है। चाहे वह जानमाल का मामला हो या फिर पर्यावरणीय क्षति का सभी पर रिपोर्ट तैयार होगी।
केवीएस चौधरी, कलेक्टर सिंगरौली।