व्याकरण का अध्ययन खेतड़ी से किया
स्वामीजी जब खेतड़ी आए तब राज पंडि़त नारायणदास से व्याकरण,अष्टाध्यायी एवं महाभाष्य का अध्ययन किया। यहां रहते हुए स्वामीजी ने खेतड़ी के राजा अजीत सिंह को विज्ञान का अध्ययन करवाया। स्वामीजी की सहमति से खेतड़ी में एक प्रयोगशाला भी स्थापित की गई। अजीत सिंह के महल की छत पर एक टेलीस्कोप लगाया गया। जिससे स्वामीजी एवं राजाजी तारामण्डल का अध्ययन करते थे।
स्वामी विवकानंद खेतड़ी जब दूसरी बार आए तब दीवान खाना में छत पर बने कमरे में ठहरे हुए थे। नीचे राजा अजीत सिंह दरबारियों सहित बैठे तथा राज नर्तकी मैनाबाई राजा के पुत्र जन्मोत्सव पर नृत्य कर रही थी। राजाजी ने स्वामी जी को भी नौकर को भेजकर नीचे बुलाया। स्वामी जी नीचे राज नर्तकी को नृत्य करते देख तुरन्त वापस जाने लगे। इस पर राज नर्तकी ने तुरन्त सूरदास का भजन ‘प्रभुजी मोरे अवगुण चित न धरो…’ गाया तो स्वामीजी राज नर्तकी के इस भजन से वे प्रभावित हुए व वापस आकर राज नर्तकी मैना बाई के चरणों में नमन कर कहा कि माता मुझसे भूल हुई मुझे माफ कर दो मुझे आज ज्ञान की प्राप्ति हुई है।
स्वामी विवेकानंद एवं राजा अजीत सिंह की यादों को चिरस्थायी बनाने के लिए पंडित झाबरमल शर्मा एवं पंडित वेणीशंकर शर्मा के प्रयासों से खेतड़ी के तत्कालीन राजा बहादुर सरदार सिंह ने अपना फतेह विलास महल एवं जनानी ड्योडी रामकृष्ण मिशन आश्रम को दान में दे दी। इसमे प्रदेश के प्रथम रामकृष्ण मिशन आश्रम खेतड़ी का विधिवत उद्घाटन तत्कालीन राज्यपाल डा.सम्पूर्णानंद ने 11 नवम्बर 1963 को किया।
पांच करोड़ का खर्चा
राजस्थान सरकार व केन्द्र सरकार के आर्थिक सहयोग से रामकृष्ण मिशन में स्वामी विवेकानंद की याद को चिर स्थाई बनाने के लिए लगभग पांच करोड़ रुपए की लागत से स्वामी विवेकानंद राष्ट्रीय संग्रहालय का निर्माण कार्य जारी है। रामकृष्ण मिशन आश्रम के सचिव स्वामी आत्मनिष्ठानंद ने बताया कि इस राष्ट्रीय संग्रहालय का लगभग तीन-चौथाई से अधिक कार्य पूर्ण हो चुका है।