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सीकर के लाल का कमाल… एनडीए कोर्स में पाया गोल्ड, पिता के लिए इंजीनियरिंग छोड़ गया सेना में

लक्ष्य था इंजीनियर बनने का, पिता की भावनाओं का ख्याल आया तो चुनी सेना और प्र​शिक्षण में जीत लिया गोल्ड, 147 वें एनडीए कोर्स का टॉपर बना अंकित, अब देहरादून में मिलेगा प्र​शिक्षण, इसके बाद होगी लेफ्टीनेंट के पद पर नियु​क्ति

सीकरDec 03, 2024 / 01:32 pm

pushpendra shekhawat

nda gold medalist ankit chaudhary
यदि मन में कुछ करने का जूनून हो तो तमाम चुनौतियों को भी मात देकर इतिहास रचा जा सकता है। यह साबित कर दिखाया है सीकर जिले के खंडेला क्षेत्र के बरसिंहपुरा गांव निवासी अंकित चौधरी ने। अंकित का बचपन से सपना इंजीनियर बनने का था। इसके लिए अंकित ने जेईई की तैयारी शुरू कर दी और जेईई मेन पास भी कर ली। जेईई एडवांस व एनडीए का साक्षात्कार ति​थि नजदीक होने की वजह से कॅरियर का एक ऑप्शन चुनने का फैसला लेने पर मजबूर होना पड़ा। ऐसे में अंकित ने पिता के सपनों को पूरा करने का मन बनाया और एनडीए के ऑप्शन को चुना। पहले ही प्रयास में अंकित का एनडीए में चयन हो गया। अंकित ने तीन साल के प्र​शिक्षण में पहली रैंक हासिल कर गोल्ड मेडल जीता है।

बिना कोचिंग एनडीए की तैयारी

खास बात यह है कि अंकित चौधरी ने जेईई मेन की जरूर कोचिंग की। लेकिन एनडीए की कोई कोचिंग नहीं की। एनडीए के सिलेबस के आधार पर घर पर रहकर खुद ही पढ़ाई की। इसके बाद भी पहले ही प्रयास में सफलता हासिल की। दोनों परीक्षाओं के सिलेबस में कुछ टॉपिक कॉमन होने की वजह से काफी फायदा भी मिला।

पिता भी सेना में रहे

अंकित के पिता सुल्तान सिंह ने भी 17 साल तक 11 राजपूताना राइफल्स में नायक के पद पर सेवाएं दी है। सेना से सेवानिवृ​त्ति के बाद राजस्थान पुलिस में भी कांस्टेबल के पद पर चयन हो गया। लेकिन गंभीर बीमारी की वजह से 2016 में निधन हो गया। अंकित की मां सरोज देवी तृतीय श्रेणी अध्यापिका के पद पर कार्यरत है। वहीं छोटा भाई अंशु फिलहाल एम्स नागपुर से डॉक्टरी की पढ़ाई में जुटा है।
nda gold medalist ankit chaudhary

करगिल युद्ध में पिता को मिला सेना मेडल

अंकित के भारतीय सेना से लगाव होने की कई वजह रही। उन्होंने बताया कि करगिल युद्ध में पिता ने वीरता का परिचय देते हुए दुश्मन के पसीने ला दिए थे। इसके लिए सेना की ओर से सेना मेडल भी दिया गया। इसके बाद जब पिता बीमार थे तब सेना के अस्पतालों में जो एक परिवार की तरह माहौल मिला उससे लगा कि मुझे भी पिता के बताई हुई राहों के हिसाब से सेना में ही सेवाएं देनी चाहिए। इसलिए इंजीनियरिंग को छोड़कर एनडीए के ऑप्शन को चुनना ज्यादा बेहतर लगा।

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