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गोद पाकर बेटियों ने छूआ आसमां ,संघर्ष से पाया मुकाम

जिनको गांव वालों ने मिलकर गोद लिया और इनकी पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा उठाया

सीकरJan 24, 2018 / 10:24 am

vishwanath saini

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बेटी दिवस विशेष: जीवन से माता-पिता का साया उठ जाने व इनके अलावा कुछ जरूरतमंद बेटियों ने सोचा भी नहीं था कि वे बेसहारा एक दिन पढ़-लिख कर कामयाबी का मुकाम हासिल कर सकेंगी। लेकिन, सिसकती हिचकियों के बीच औरों का दामन मिला तो इनकी टूटी उम्मीदों को भी पंख लग गए। बानगी यह है कि इनके अलावा कुछ जरूरतमंद बेटियां और हैं। जिनको गांव वालों ने मिलकर गोद लिया और इनकी पढ़ाई-लिखाई का जिम्मा उठाया।
आज वहीं बेटियां अपनी मेहनत और पढ़ाई के बलबूते सरकारी पदों पर हैं तथा परिवार के बाकी सदस्यों का भविष्य सुधारने में जुटी हुई हैं। जी हां, हम बात कर रहे हैं गांव लोसल की। जिसमें गांव वालों ने मिलकर 327 बेटियों को गोद ले रखा है। इनमें 170 लाडो तो वे हैं जिनके सिर पर माता या पिता का हाथ नहीं है। बाकी की जरूरतमंद वो बेटियां शामिल हैं। जिनके परिवार की आर्थिक स्थित कमजोर कम होने के कारण उनकी हैसियत नहीं है कि वे इन्हें आगे तक पढ़ा सकें। इनकी मदद गांव वाले खुद अपने खर्चे या किसी से मिलकर करते हैं।
गांव के मोहनराम जाखड़ का कहना है कि बेटियों की मदद करने वाले इस एनजीओ को गांव वालों ने आरडीएस नाम दे रखा है। जिसमें गांव के कई बुजुर्ग, युवा व महिलाएं भी जुड़ी हुई हैं। इनमें से किसी की भी जानकारी में आने पर वे जरूरतमंद बेटियों के पास पहुंचते हैं। बेटी या परिवार के बाकी सदस्यों की सहमति पर इनको गोद लेने का निर्णय लेते हैं। बुजुर्ग मुन्नालाल गौड़ के अनुसार सबकी जेब खर्च से इनकी सुविधाएं जुटाई जाती हैं।
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बन गई डॉक्टर
लोसल निवासी डा. महिमा सोनी का कहना है कि परिवार में एक बार ऐसी स्थिति आ गई थी कि आगे की पढ़ाई पूरी कर पाना संभव नहीं था। इसके बाद गांव के इस एजीओ ने पढऩे का खर्चा उठाया और मदद कर डॉक्टरी की परीक्षा दिलवाई। सहयोग के साथ खुद की मेहनत पर भी भरोसा रखा। जिसके कारण आज सफलता का मुकाम हासिल कर मरीजों की सेवा का जिम्मा उठा रही हूं।
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बनी कनिष्ठ सहायक
रामपुरा की कमलेश कुमारी के पिता की मामूली कमाई के कारण पढ़ाई गांव वालों ने कोचिंग की पढ़ाई करने में साथ दिया। जिसका नतीजा रहा कि पंचायत में कनिष्ठ सहायक का पद मिला।
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इसी दम पर एएनएम
बिजारणियां की ढ़ाणी निवासी संतोष को गांव वालों ने आर्थिक व पारिवारिक मदद कर इस बेटी को आगे बढ़ाया। संतोष महसूस करती है कि आज वो घाटवा गांव में एएनएम के पद पर हैं।

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