जिनके महलों में रंग के फानूश थे…झाड है उनकी कब्र पर और निशां कुछ भी नहीं! कुछ ऐसे ही हालात बने हैं राजसी वैभव के प्रतीक सुभाष चौक स्थित गढ़ के। कभीं यहां राज दरबार सजता था। राज्य के विकास के अहम फैसले हुआ करते थे। राजा, मंत्रियों, सभासदों और राजसी बग्घियों का वैभवपूर्ण माहौल था…लेकिन वक्त की दीमक इन सबको खा गई।
सुभाष चौक गढ अब गुमनामी के अंधेरे में डूबा है। विक्रम संवत 1744 (12 अप्रेल 1687) में राव दौलतसिंह ने सीकर शहर की स्थापना की थी। उस दौरान सुभाष चौक में छोटा गढ़ बनाया गया था। 1954 तक शहर पर 11 राजाओं ने राज किया। अंतिम शासक राव राजा कल्याणसिंह थे। इन्होंने 34 साल तक राज किया। इनके शासनकाल में शहर में काफी निर्माण कार्य हुए।
15 जून 1954 में राजशाही को सरकार ने अधिगृहित कर लिया। 1721 में शिव सिंह सीकर के राजा बने। इन्हें पिता से 25 गांव उत्तराधिकार में मिले थे। शिवसिंह ने सीकर को ढंग से बसना शुरू किया ओर सीकर के चारों और पक्की चारदीवारी बनाकर सीकर को शत्रु के लिए दुर्जेय बना दिया।
सीकर को श्रीकर के नाम से जाना जाता रहा। इसे शिखर भी कहा जाता था, क्योंकि गढ़ पर बसाया गया था। 1890 से 1907 के बीच में गढ़ में ही मकराना महल का निर्माण करवाया गया। इतिहास के इन तमाम पहलुओं के बीच यह वास्तविकता अपनी जगह पर है कि राजशाही से जुड़ी एक अनमोल धरोहर इन दिनों वक्त की गर्दिश में डूब रही है।
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