यहां के ग्रामीणों की शीतलदास महाराज में अगाध आस्था के कारण यहां लोग शीतल धाम ठीकरिया को गुरुद्वारा मानते हैं। बाबा शीतलदास जब भी छापोली जाते तो इस मंदिर के सामने शीतला माता की चबूतरी बैठकर नीम के नीेच विश्राम करने के बाद आगे की यात्रा तय करते थे। इसकी गांव में काफी मान्यता है। सरकार ने 1972 में इसको राजस्व गांव नृसिंहपुरी बनाया था। वर्तमान में यह ग्राम पंचायत मुख्यालय है तथा चारों ओर से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। गांव में ए श्रेणी का आयुर्वेदिक चिकित्सालय, राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय व संस्कृत विद्यालय भी है।
यहां सार्वजनिक धर्मशाला व बावड़ी भी बनी हुई है। यहां बड़ी गोशाला है, जिसमें तीन सौ गायें है। गांव के श्यामसुंदर शास्त्री ने बताया कि 1967 में शक्ति माता मंदिर की स्थापना की गई तथा यहां कोठीवाला बालाजी धाम व श्रीराम मंदिर व संतों का आश्रम भी है। इसमें महंत माधवदास मौजी बाबा के सानिध्य में कार्यक्रम होते रहते हैं।
गांव का इतिहास
बुजुर्ग जगदीशसिंह शेखावत, सुमेरसिंह शेखावत आदि ने बताया कि गुहाला के तत्कालीन राजा चैनसिंह महाराज के दो पुत्र नृसिंह व दीपसिंह थे। राजा की अचानक मृत्यु के बाद राजकुमारों को परेशानी के दौर से गुजरना पड़ा। बाद में वे छापोली मौसी के यहां चले गए। वहां युवराज नृसिंह बीमार हो गए तथा उन्होंने एक साल तक कुछ नहीं खाया-पीया। इससे वे मरणासन्न अवस्था में पहुंच गए। उन्हें संत शीतलदास के कहने पर ठीकरिया लाया गया, जहां शीतलदास महाराज ने उन्हें नया जीवन दिया। तब से युवराज में बाबा के प्रति खासा आस्था बढ गई। छापोली से ठीकरिया आना और बाबा के दर्शन करने के बाद ही जल सेवन करना नियम बना लिया। बाबा ने सोचा ऐसे तो युवराज को काफी परेशानी होगी। इस पर बाबा ने एक दिन युवराज को कहा कि जहां भी निर्जन स्थान पर आप को गोमाता मिले वहां तो डेरा डाल देना तथा जहां गोमाता बछडी को जन्म दे, वहां कुई खोद लेना। उसका पानी पीने के बाद मेरे दर्शन करने की जरूरत नहीं है। शीतलदास महाराज ने उन्हीं के नाम से गांव का नामकरण नृसिंहपुरी किया था।