युवाओं ने थामी बागडोर
रामपुरा के किसान राजकुमार मुवाल, सुखाराम मुवाल ने बताया कि चुंनिदा किसानों की ओर से अपनाई गई इस तकनीक से धोद क्षेत्र सहित बीकानेर जयपुर, अलवर, भरतपुर जिलों के सैकड़ों युवा किसान जुड़ चुके हैं। अधिकांश खेतों में सौर ऊर्जा, बूंद बूंद सिंचाई पद्धति, शेडनेट, लोटनल, ग्रीन हाउस नजर आते हैं।
अच्छे मुनाफे के कारण झीगर के महेश पचार, तासर बड़ी के मनोज काजला सहित कई किसानों ने उच्च शिक्षा व नौकरी के अवसर मिलने के हाइटेक खेती को आधार बना लिया है। डार्क जोन में शामिल धोद के रामचन्द्र, सुभाष, राजेश पावडिया ने सौ बीघा की बजाए दस बीघा में हाइटेक खेती से कई गुना उत्पादन कर लिया है। नवाचारों के लिए प्रदेशभर में सीकर के किसानों की पहल को सराहा गया है।
यह है मल्चिंग
मल्चिंग शीट दो रंग की प्लास्टिक शीट होती है। यह शीट नीचे से काली व ऊपर से चांदी के रंग की होती है। मल्चिंग शीट बिछाने से पूर्व मिट्टी की करीब एक फिट ऊंची क्यारी बनाकर ड्रिप की लाइन बिछा दी जाती है। इसके बाद निश्चित फासले पर छेद करके इसमें बीज व पौधे लगाए जाते हैं। मल्चिंग शीट के नीचे ड्रिप से पानी जाने के कारण भूमि में नमी बनी रहती है। और फसल में खरपतवार नहीं होने के साथ-साथ कीट-प्रकोप भी नहीं होता है।
जरूरत बनी तो मल्चिंग बनी सहारा
मौसम में होने वाले बदलाव के कारण जिले के किसानों को उनकी मेहनत का फल नहीं मिल रहा था। पारम्परिक खेती पर जोर होने से किसान चाहकर भी इनसे दूर नहीं जा पा रहा था। ऐसे में वर्ष1999 में किसानों ने ग्रीन हाउस, शेडनेट अपनाई जाने लगी। इन तकनीकों को अपनाने के बाद से फसलों में रोग कीट का प्रकोप कम होने लगा। इसके बाद किसानों ने एक कदम आगे बढ़ते हुए लोटनल की खेती अपनानी शुरू कर दी। इससे अब किसान फसल को पाले व शीतलहर से बचाने लगे हैं।
जिले में शेडनेट, ग्रीनहाउस व बूंद-बूंद सिंचाई का अपनाने वाले किसानों की संख्या बढ़ती जा रही है। इन तकनीकों के अपनाने के बाद किसानों की आमदनी कई गुना बढ़ गई है।
हरलाल सिंह, उपनिदेशक उद्यान सीकर