यहां क्या नहीं है…घना जंगल, पहाड़, झरने, पोखर और प्रकृति की गोद में पलते सैकड़ों प्रजाति के वन्यजीव। ऐसे में पैंथरों की बसावट के लिए नीमकाथाना वन क्षेत्र सुरक्षित, मुफीद और आदर्श जगह है। उल्लेखनीय है कि इस वनक्षेत्र को पैंथर रिजर्व बनाने की कवायद शुरू तो हुई, लेकिन विभाग की फाइलों में गुम हो गई। इस अनूठे वनक्षेत्र में वन्यजीव, वनस्पति, पुरा सम्पदा पर्यटकों को आकर्षित करती हैं।
नीमकाथाना उपखण्ड जिले का सबसे बड़ा क्षेत्र हैं। नीमकाथाना रेंज में १८४३५.७० व पाटन रेंज में १३२६८ वर्ग हेक्टेयर वन क्षेत्र है। नीमकाथाना व पाटन वन क्षेत्र को मिलाकर कुल ३१७०३.७० वर्ग हेक्टेयर वन क्षेत्र है, जो जिले का लगभग ५६ फीसदी वन क्षेत्र है। यह वन क्षेत्र लगभग ३५० वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है।
सीकर जिले से लगभग ९० किमी दूर है। इस वनक्षेत्र में ४६ डिग्री सेल्सियस पारा मई-जून का। वहीं ०४ डिग्री सेल्सियस पारा दिसबंर-जनवरी का। इस वनक्षेत्र में २०० तरह के पक्षी पाए जाते हैं। वहीं ४५० मिमी औसत वर्षा होती है। इस वनक्षेत्र का नजारा बरसात में कुछ अलग ही होता है। यहां शुष्क, पतझड़ी वन, पहाडिय़ां, नदी, घाटियों के बीच पलाश, बरगद, पीपल, गुगल, सालर, अमलताश, खेजड़ी, बबूल, खैरी, जामुन, बांस, धोंक, आंवले, नीम, खजूर और आम के वृक्ष हैं।
इस वनक्षेत्र में बघेरे, नीलगाय, जरख, जंगली लोमड़ी, सेही, बंदर लाल मुंह, बंदर काले मुंह, मरु बिल्ली, लोमड़ी, मरु लोमड़ी, भेडिय़ा, बिज्जू, सियार/गीदड़ व नेवला जैसे दुर्लभ प्राणी भी देखने को मिलेंगे। अधिकारियों के अनुसार यहां २५-३० पैंथर, ५०० नीलगाय, २०० गीदड़ व ४५०० से अधिक बंदर हैं।
नीमकाथाना वन क्षेत्र में २८०० वर्ष ईसा पूर्व (लगभग ४८०० वर्ष पूर्व) ताम्रयुगीन सांस्कृतिक केन्द्रों में सबसे पुराना तीर्थ स्थल है। इसके अलावा १३वीं शताब्दी का बालेश्वर धाम, १३ वीं शताब्दी का ही टपकेश्वर धाम सहित बागेश्वर व थानेश्वर धाम स्थित हैं। गणेश्वर सभ्यता संस्कृति व प्राचीन वैभव को दर्शाती है।
पक्षियों की दुनिया निराली
इस वन क्षेत्र में लगभग २०० तरह के पक्षियों की प्रजातियां हैं। यहां मोर, कबूतर, कोयल, गोरैया, बाज, उल्लू, तोते, बुलबुल समेत पक्षियों की विभिन्न प्रजातियां मन मोहने को पर्याप्त हैं। नीमकाथाना वन क्षेत्र पैंथर के लिए नया नहीं है। एक जानकारी के अनुसार यहां ८० के दशक तक शेर, बाघ व पैंथर की दहाड़ गूंजती थी।
२०११ में एक पैंथर जोड़े ने अपने आप को यहां स्थापित किया था। पिछले दिनों भी क्षेत्र में पैंथर देखे गए। यह वन क्षेत्र पैंथरों के आवास के लिए अनुकूल होने के बाद भी पैंथर रिजर्व बनाने का सपना अभी अधूरा है। जनवरी २०१६ से राजस्थान पत्रिका ने पैंथर रिजर्व बनाने के लिए लगातार समाचार शृंखलाएं प्रकाशित की थी। इसके बाद विभाग हरकत में भी आया।