शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में स्थित चांदपाठा झील में मगरमच्छों की संख्या अधिक होने के कारण पिछले चार साल से शहर में निकलने वाले मगरमच्छों को अमोला पुल पर सिंध नदी में छोड़ा जा रहा है। पिछले दिनों जब दिन-रात बारिश हुई तो नालों के उफनने से उनमें विचरण करने वाले मगरमच्छ वहां की सड़कों पर घूमने लगे। बीती रात रामपौर दरवाजे के पास नाले से बाहर आकर सड़क किनारे बैठे एक बड़े मगरमच्छ ने वहां से निकल रहे 19 वर्षीय युवक राकेश का पैर पकड़ लिया। राकेश के चिल्लाने पर स्थानीय लोग वहा पहुंचे और मगरमच्छ के चंगुल से बचाया। गंभीर रूप से घायल युवक को उपचार के लिए जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया।
मगरमच्छ के पुराने रास्तों में आए लोग शिवपुरी शहर व उसके आसपास कभी 18 तालाब हुआ करते थे, जो आपस में नालों के माध्यम से इंटरकनेक्ट थे। तालाबों में मौजूद मगरमच्छ इन नालों के रास्ते से होकर ही एक जगह से दूसरी जगह जाते थे। तालाबों का अस्तित्व खत्म होने के बाद अब नालों पर कब्जा करके लोगों ने अपने आवास बना लिए। नेशनल पार्क के वन्यजीव प्राणी चिकित्सक डॉ. जितेंद्र जाटव का भी कहना है कि मगरमच्छ इंसानों के इलाके में नहीं पहुंचे, बल्कि इंसान उनके रास्तों में आ गया।
बैंक कॉलोनी में आया छह फीट का मगरमच्छ शनिवार की देर दोपहर बैंक कॉलोनी में एक छह फीट लंबा मगरमच्छ रिहायशी इलाके में घूमता नजर आया। चूंकि मगरमच्छ आए दिन शहर में निकलते रहते हैं, इसलिए लोगों में अब उसके प्रति डर भी कम होता जा रहा है। यही वजह है कि बैंक कॉलोनी के कुछ युवाओं ने रस्सी का फंदा लगाकर मगरमच्छ को फंसा लिया और फिर उसके मुंह को टेप से बंद करके उसे प्लास्टिक कट्टे में रख लिया। उसके बाद वे उसे माधव नेशनल पार्क स्टाफ को सौंप आए।
नहीं बन पाई क्रोकोडायल सेंचुरी शिवपुरी शहर के नजदीक स्थित चांदपाठा झील में जहां लगभग 1500 मगरमच्छ हैं, वहीं जाधव सागर तालाब व उसके आसपास लगभग 500 मगरमच्छ विचरण करते हैं। इतनी बड़ी संख्या में मगरमच्छ होने के कारण पूर्व में यह प्रस्ताव भी रखा गया था कि शिवपुरी में क्रोकोडायल सेंचुरी बनाई जाएगी, लेकिन यह प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया। यदि जाधव सागर या अन्य किसी तालाब में मगरमच्छों को संग्रहित किया जाए तो सैलानियों को वो आसानी से नजर आ जाएंगे।