इसके पूर्व कथा का वाचन करते हुए प्रभु प्रिया रामायणी ने कहा कि जब-जब धरती पर पाप बढ़ा है तब-तब प्रभु ने इस धरती पर अवतार लेकर इसे पावन किया और दुष्टों का नाश किया है। कथावाचक रामायणी ने कहा कि लोग कहते हैं कि उनके जीवन में कष्टों की भरमार हैं, लेकिन वे यह क्यों भूल जाते हैं कि प्रभु श्री राम को भी 14 बरस तक वनवास काटना पड़ा था। कथावाचक ने कहा कि जो भी होता है अच्छे के लिए होता है। भगवान जो भी करते हैं हमेशा अच्छे के लिए करते हैं। देखने मेें वह हमें कष्टप्रद प्रतीत होता है, लेकिन प्रभु की लीला का हमें बाद में पता चलता है। इसलिए हमेशा प्रभु का स्मरण करते रहें और उनका आभार मानते रहें। इसके बाद कथा स्थल पर ताडक़ा-मारीच का वध, विश्वामित्र के साथ प्रभु का जनकपुरी जाना और वहां स्वयंवर में माता सीता का वरण और फिर श्रीराम-जानकी विवाह प्रसंग प्रस्तुत किया गया। कथा के दौरान भगवान श्री राम और माता सीता का स्वरुप धरकर पहुंचे कलाकारों ने जब एक-दूसरे को वरमाला पहनाई तो पूरा पांडाल भगवान श्रीराम और माता जानकी के जयकारों से गूंजायमान हो गया। इस दौरान बड़ी संख्या में भक्त मौजूद रहे।