सांपखेड़ा निवासी बंजारा समाज के नारायंणसिंह राठौड़ पनी पतली ओर बेटों के साथ परिवार सहित रहते थे। बेटे मां को देवी तुल्य समझते थे, लेकिन संक्रमणकाल में गीताबाई की कोरोना से मौत हो गई। अहमेशा मां के साए में रह रहे बेटे मां की कमी को सहन नहीं कर पा रहे थे।
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तीसरे पर दिया प्रतिमा बनाने का ऑर्डर
बेटे लकी ने बताया, मां के चले जाने से पूरा परिवार टूट गया था। ऐसे में सभी ने मां की प्रतिमा बनवाने का निर्णय लिया। तीसरे के दिन 29 अप्रैल को उनकी प्रतिमा बनवाने का ऑर्डर अलवर राजस्थान के कलाकारों को दे दिया। करीब डेढ़ माह बाद प्रतिमा बनकर तैयार हुई, जिसे घर पर ले आए।
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विधिवत प्राण-प्रतिष्ठा
बेटे ने बताया कि मां की प्रतिमा घर पर आई तो एक दिन घर में रखा। इसी दौरान घर के बाहर मुख्य दरवाजे के पास प्रतिमा की स्थापना के लिए चबूतरा बनवाया। दूसरे दिन विधिवत प्रतिमा की प्राण- प्रतिष्ठा की गई। अब वह प्रतिदिन सुबह उठते ही अपनी मां को देख लेता है।
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