अपने आप में इस अनोखे कुंड को बाणगंगा के नाम से जाना जाता है। यहां आने वालों को एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है, साथ ही एक खास अनुभूति होती है। बाणगंगा कुंड में इन दिनों मकर संक्रांति की तैयारी चल रही है। मकर संक्रांति के दिन इस कुंड में हजारों लोग आस्था का स्थान करने पहुंचते हैं। यही नहीं, यहां आने वाले भक्तों का तांता यहां सालभर लगा रहता है। इस कुंड में लोग डुबकी तो लगाते ही हैं। साथ ही, इसका पानी पीते और घर भी ले जाते हैं। इस कुंड के पानी को भी चमत्कारी माना जाता है। ये कुंड क्षेत्र में अपने अलौकिक, ऐतिहासिक और चमत्कारी महत्वों के चलते खासा प्रसिद्ध है।
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दूर दूर से यहां आते हैं भक्त
बाणगंगा कुंड के बारे में बताते हुए पुजारी अभिषेक कुमार द्विवेदी का कहना है कि, उन्होंने अपने पूर्वजों से सुना है कि, बाणगंगा कुंड का निर्माण पांडवों द्वारा अपने अज्ञात वास के दौरान किया था। उस दौरान पांडवों ने कई कुंड बनाए थे, जिसमें से एक बाणगंगा कुंड भी है। उन्होंने कहा कि, कुंड की विशेषता ये है कि, पशुपालन से संबंधित लोग इस कुंड का जल ले जाते हैं और गाय के पैरों में डालते हैं। इस जल को मवेशियों को पिलाने से उन्हें खुरपका रोग नहीं होता। लोगों की कुंड से गहरी आस्था है, जिसके चलते यहां अकसर लोग स्नान करने आते रहते हैं। खासतोर पर चर्म रोग से ग्रस्त व्यक्ति इस जल में स्नान करने से ठीक होता है।
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प्रांगण में कई देवी देवता मौजूद
बाणगंगा कुंड परिसर में पुरातत्व महत्व की कलचुरी कालीन कई प्रतिमाएं हैं। जो आपका मन मोह लेंगी। यहां के पुजारी का कहना है कि इस प्रांगण में भगवान राम का दरबार लगा हुआ है। इसके अलावा दक्षिण मुखी हनुमान जी का एक अलग मंदिर है, शालीग्राम भी विराजमान हैं, साथ ही इस कुंड से लगा हुआ विराट मंदिर भी है, जिसके दर्शन के लिए लोग अक्सर आते रहते हैं। वो ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व का अद्भुत विराट शिव मंदिर है।
मकर संक्रांति पर लगती है आस्था की डुबकी
पुजारी का कहना है कि यहां लोग मकर संक्रांति के दिन आस्था की डुबकी लगाने के लिए हजारों लोग यहां सुबह-सुबह पहुंचते हैं, और स्नान करते हैं। मकर संक्रांति के दिन यहां डुबकी लगाने के बाद विशेष दान का भी महत्व होता है, कोई तिल का दान करता है, कोई कंबल का दान करता है। इस कुंड से क्षेत्रवासियों की एक विशेष आस्था जुड़ी हुई है। इस कुंड में डुबकी लगाने के बाद यहां सैकड़ों साल पुराना ऐतिहासिक बाणगंगा मेला लगता है लोग उसमें शामिल होते हैं।
कुंड के जल में औषधीय तत्व होने की कही जाती है बात
राम नाथ परमार कहते हैं कि ये ऐतिहासिक स्थल है इसका संबंध जन भावना और ऐतिहासिकता से जुड़ा हुआ है। धार्मिक स्वरूप से जुड़ा हुआ है मकर संक्रांति के पर्व पर लोग इस कुंड में स्नान करते हैं और विराट मंदिर में शिव के दर्शन करते हैं क्योंकि यह ऐतिहासिक स्थल है पुरातन स्थल है यहां पर मकर संक्रांति के पर्व पर बाणगंगा मेले का भी आयोजन किया जाता है, जो बहुआयामी उद्देश्य को लेकर अंतरराज्यीय मेला है। यहां दूसरे राज्यों के भी व्यापारी आते हैं और पूरे क्षेत्र के लोग अलग-अलग जगहों से आकर इस मेले का आनंद उठाते हैं। यहां लगभग 100 साल से भी ज्यादा समय से मकर संक्रांति के दिन मेले का आयोजन किया जा रहा है।
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