जिला स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार अब तक दो सैकड़ा से ज्यादा ऐसे मासूमों को चिहिंत किया गया है, जो श्रवण बाधिता के शिकार हैं। रिकॉर्ड पर नजर डालें तो सबसे ज्यादा बहरेपन के शिकार मासूम आदिवासी समुदाय से हैं। विशेषज्ञों के अनुसार बहरेपन के पीछे नियमित देखरेख का अभाव और पोषण आहार न मिल पाना मुख्य वजह है। स्वास्थ्य विभाग के आरबीएसके (राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम) के सर्वे में हर तीन से चार दिन के अंतराल में एक बहरेपन की चपेट में मिल रहा है। स्वास्थ्य विभाग हर माह जन्म से न सुन पाने वाले 8 से 10 बच्चों को इलाज के लिए चिहिंत कर रहा है।
जन्म से पांच साल तक के मासूम ज्यादा
स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार पिछले एक साल में लगभग 80 बच्चों को चिन्हित किया गया है। इसमें जन्म से लेकर पांच साल तक के मासूम सबसे ज्यादा हैं। पिछले एक साल में 50 मासूम जीरो से
पांच साल तक के शामिल हैं। जबकि 25 से 30 बच्चे ऐसे हैं जो 5 से 18 साल तक के हैं। जीरो से पांच साल तक के बहरेपन के शिकार मासूमों का विभाग कांकलियर इम्प्लांट करा रहा है, जबकि पांच से 18 साल तक के बच्चों को मशीन उपलब्ध कराई जा रही है।
एनीमिक प्रसूता, कम वजन और फिर मानसिक कमजोर
विशेषज्ञों की मानें तो जिले के आदिवासी अंचलों में न्यूट्रिशन न मिलने और देखरेख के अभाव में प्रसूताएं एनीमिया का शिकार हो जाती हैं। स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार अब तक २६ हजार से ज्यादा प्रसूताओं की जांच हुई है, जिसमें २१ हजार से ज्यादा प्रसूताएं एनीमिक मिली हैं। एनीमिया के चलते गर्भ में पल रहे मासूम पर भी इसका विपरीत असर पड़ता है। बच्चा कम वजन का हो जाता है। कम वजन होने से बच्चा कई बार समय से पहले हो जाता है। इस स्थिति में बच्चे का ब्रेन डेवलप नहीं हो पाता है। इस स्थिति में मानसिक रूप से कमजोर हो जाता है और बचपन से श्रवण बाधिता का शिकार हो जाता है।
अधिकांश में नहीं डेवलप हो रहा ब्रेन का पार्ट
ऑडियोलॉजिस्ट रंजीत कुमार बताते हैं कि गांवों में यह बीमारी ज्यादा देखने को मिल रही है। विभाग सर्वे करा रहा है तो इस बीमारी को आसानी से चिहिंत किया जा रहा है। हम ऐसे मासूमों का इलाज करा रहे हैं। अब तक ८ मासूमों का कॉकलियर इम्प्लांट करा चुके हैं और 8 प्रक्रिया में हैं। 125 से ज्यादा मासूमों को सुनने के लिए मशीन दी गई है। इलाज के दौरान यह सामने आ रहा है कि ब्रेन का पार्ट डेवलप न होने से यह स्थिति बन रही है। ग्रामीण महिलाएं गर्भकाल में देखरेख नहीं कर पा रही है। न्यूट्रिशन की कमी से भी यह हो सकता है। इसके अलावा जन्म के दौरान बच्चे का न रोना, समय के पहले प्रसव , जन्म के बाद बच्चे का गिरना और सिर में चोट लगना भी वजह है। अब तक २०० से ज्यादा श्रवण बाधिता के मासूमों को चिहिंत किया है।
8 बच्चों को दी गई आवाज, 8 की तैयारी
स्वास्थ्य विभाग लगातार ग्रामीण अंचलों में मिलने वाली मासूमों में बहरेपन को गंभीरता से ले रहा है। स्वास्थ्य विभाग ने अब तक सर्वे के बाद 8 बच्चों को चिहिंत किया था जो सुन और बोल नहीं पाते थे। कॉकलियर इप्लांट कराते हुए इलाज कराकर आवाज दी है। जबकि 8 बच्चों का कॉकलियर इम्प्लांट की तैयारी है। जल्द ही इन बच्चों को भी आवाज लौटाने के लिए कॉकलियर इम्प्लांट किया जाएगा।
कुपोषण और एनीमिया
कुपोषित मासूम – 18964
अतिकुपोषित मासूम- 1878
प्रसूताओं की जांच- 26 हजार
एनीमिक प्रसूताएं- 21 हजार
(स्वास्थ्य विभाग और महिला एवं बाल विकास विभाग के एक साल के आंकड़ों के अनुसार)
कुपोषण पर विशेष फोकस
कलेक्टर नरेश कुमार पाल के मुताबिक कुपोषण पर हमारा विशेष फोकस है। हम प्राथमिकता से लेकर हर सप्ताह बैठक ले रहे हैं। रिपोर्ट को एनालिसिस किया जा रहा है। प्रशासन कुपोषित मासूमों के परिजनों को रोजगार से जोड़ रहा है। एनीमिया और कुपोषण के चलते यदि मासूम गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं तो बेहद गंभीर मामला है। अधिकारियों से चर्चा की जाएगी। श्रवण बाधिता के शिकार बच्चों का इलाज होगा।