शासन सरकारी स्कूल में पढ़ाई का स्तर बेहतर बनाने लाखों रुपए पानी की तरह बहा रहा है। इसके लिए कई योजना चलाकर अन्य उपाय भी किए जा रहे हैं। बावजूद इसके इन स्कूलों में बदलाव के नाम पर ज्यादा कुछ नजर नहीं आएगा। बुधवार को पत्रिका टीम ने हकीकत जानने निरीक्षण किया तो नजारा चौकाने वाला सामने आया। कई स्कूल में दर्ज बच्चों में से बहुत कम ही मौजूद थे। इनमें से कई के पास तो डे्रस तक नहीं थी। अन्य समस्या भी देखने को मिली। उल्लेखनीय है कि मंगलवार को डीइओ एसपी त्रिपाठी कस्तूरबा स्कूल पहुंचे थे। उनको स्टाफ गायब मिला था। इसके चलते वेतनवृद्धि रोकने की कार्रवाई की थी।
केस 1- बच्चे लगा रहे थे झाड़ू टीम सबसे पहले सुबह साढ़े १० बजे शहर के इंदिरा कॉलोनी स्थित शासकीय माध्यमिक स्कूल में पहुंची। यहां स्कूल में पढऩे आए बच्चे अपने कक्ष में बैठने के लिए झाड़ू से साफ सफाई कर रहे थे। प्राइमरी और मिडिल को मिलाकर वैसे तो इस स्कूल में ८० बच्चों की संख्या दर्ज है। उसमें सिर्फ २५ के करीब ही आए हुए थे। वहीं ६ स्टाफ में से दो शिक्षक और एक शिक्षिका ही पढ़ाने के लिए पहुंची थी। शेष शिक्षक के नहीं आने का कारण पूछा तो स्पष्ट नहीं बताया गया।
केस 2-पढ़ाता मिला 1 शिक्षक दोपहर साढ़े १२ बजे गणेश मंदिर के पास गोपालपुरा के शासकीय प्राथमिक स्कूल में यहां भी कुछ इस तरह के ही हालात सामने आए।जिसने शिक्षा व्यवस्था को बहाल करने की पोल खोलकर रख दी।पहली से पांचवी तक इस स्कूल में २८ बच्चों की संख्या दर्ज है।उसमें १७-१८ बच्चे ही नजर आ रहे थे।जिनको एक शिक्षक ही पढ़ाता हुए नजर आया।जबकि दो का स्टॉफ है।एक शिक्षक के बारे में बताया गया कि वह अवकाश पर है।
केस 3 – बच्चों को नहीं मिली ड्रेस ब्लॉक के अवंतीपुरा के प्राथमिक स्कूल में पौने एक बजे टीम पहुंची।स्कूल में २२ बच्चों में से ९ उपस्थित थे।शेष बच्चों के नहीं आने का कारण जब स्कूल के प्रधानाध्यापक बहादुर सिंह नरोलिया से पूछा तो उनका अजीब जवाब था।उन्होंने बताया कि सोयाबीन कटाई के चलते बच्चे नहीं आ रहे हैं।जितने बच्चे थे वह बिना डे्रस के ही आए थे। इस संबंध में प्रबंधन का कहना था कि तीन महीने से भी अधिक समय बीतने के बाद भी अब तक डे्रस नहीं मिली है।
इनका कहना है हमारा पूरा प्रयास रहता हैकि बच्चे स्कूल में अधिक संख्या में पहुंचे।फिर भी अभी सोयाबीन कटाई का सीजन चलने से कहीं कम बच्चे आ रहे हैं तो एक सप्ताह बाद उनकी उपस्थिति बराबर हो जाएगी।
राकेश अग्रवाल, एपीसी एकेडमिक, शिक्षा विभाग सीहोर