कबाड़ से बनाए 600 ड्रोन
प्रताप को ‘ड्रोन साइंटिस्ट’ (Drone Scientist) के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि उन्होंने अपनी प्रतिभा के बूते अकेले ही टूटे-फूटे इलेक्ट्रॉनिक्स, पुराने सामान और ई-वेस्ट से 600 से ज्यादा ड्रोन बनाए हैं। वे अब तक सीमा सुरक्षा (Border Security) के लिए टेलीग्राफी, यातायात प्रबंधन के लिए ड्रोन, मानवरहित हवाई वाहन (Unmanned Ariel Vehicles or UAV) के साथ-साथ ऑटो-पायलट ड्रोन सहित ऐसी छह परियोजनाएं पूरी की हैं। उन्होंने हैकिंग और किसी और के नियंत्रण से बचाने के लिए अपने ड्रोन के नेटवर्किंग में क्रिप्टोग्राफी (CRYPTOGRAPHY) पर भी काम किया है।
ई-वेस्ट का निस्तारण उद्देश्य
किसी भी ड्रोन पर काम करते समय उनका ध्यान इस बात पर भी रहता है कि वे तेजी से बढ़ रहे ई-वेस्ट के खतरे को भी कम करें। इसलिए वे कबाड़ और बेकार हो चुकी इलेक्ट्रॉनिक चीजों से ही अपने ड्रोन बनाते हैं। इस काम में वे टूटे हुए ड्रोन, मोटर्स, कैपेसिटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक्स का उपयोग करने की कोशिश करता है। वह इन उत्पादों के ऐसे पाट्र्स की तलाश करता है जिन्हें रिसाइकिल कर दोबारा उपयोग किया जा सकता है। इस तरह वह न केवल लागत को न्यूनतम रखता है बल्कि पर्यावरण संरक्षण का काम भी करते हैं।
87 देशों में दिखा चुके प्रतिभा
कचरे और कबाड़ से बने उनके ड्रोन को वे अब तक 87 से ज्यादा देशों में प्रदर्शन कर चुके हैं। प्रताप को जर्मनी के हनोवर में आयोजित अल्बर्ट आइंस्टीन इनोवेशन गोल्ड मेडल इंटरनेशनल ड्रोन एक्सपो-2018 से सम्मानित भी किया गया है। उन्हें 2017 में टोक्यो में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय रोबोटिक्स प्रदर्शनी में स्वर्ण और रजत पदक से भी सम्मानित किया गया है। उन्हें आइआइएससी, आईआईटी बॉम्बे समेत बहुत से राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में व्याख्यान देने के लिए भी आमंत्रित किया है। वर्तमान में वे भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के साथ एक परियोजना के लिए ड्रोन एप्लीकेशन पर काम कर रहे हैं जो महत्वपूर्ण राष्ट्रीय परियोजनाओं के लिए है। उनके ड्रोन बाढ़ पीडि़तों की मदद, आपदाओं में लोगों को ढूंढने और मदद पहुंचाने, आगजनी, बॉर्डर सुरक्षा, यातायात प्रबंधन जैसे महत्त्वपूर्ण कामों में उपयोगी साबित हुए हैं। प्रताप के ड्रोन ने कर्नाटक में आई बाढ़ के दौरान जरुरतमंदों को खाना और दवाइयां पहुंचाने का काम भी किया था।