Moon Day- किस्मत ने बाज़ी पलट दी वरना यह रूसी होता चाँद पर उतरने वाला पहला इंसान
World Moon Day- 20 July Special- नील आर्मस्ट्रांग नहीं अलेक्सी लियोनोव होते चांद पर उतरने वाले पहले इंसान, वे शीतयुद्ध के समय अमरीका और रूस के बीच शुरू हुई अंतरिक्ष रेस की अहम कड़ी थे।
Moon Day- किस्मत ने बाज़ी पलट दी वरना यह रूसी होता चाँद पर उतरने वाला पहला इंसान
साल 2019 में रूसी अंतरिक्ष यात्री अलेक्सेई आर्किपोविच लियोनोव का 85 वर्ष की आयु में मॉस्को में निधन हो गया था। लियोनोव के निधन के साथ ही अंतरिक्ष दौड़ के एक स्वर्णिम युग का भी अंत हो गया। वे शीतयुद्ध के समय अमरीका और रूस के बीच शुरू हुई अंतरिक्ष रेस की अहम कड़ी थे। उन्होंने 1960 के दशक में रूसी अंतरिक्ष कार्यक्रम के अंतर्गत ‘कॉस्मोनॉट कोर’ का गठन किया था।
कहा जाता है कि 1970 के दशक में रूस के अंतरिक्ष कार्यक्रम यूएसएसआर (USSR) के रॉकेट कार्यक्रम प्रमुख वासिली मिशिन उनसे बेहद नाराज थे। दरअसल वासिली का मानना था कि दुनिया के पहले अंतरिक्ष स्टेशन सैल्यूट-1 पर रहने के दौरान लियोनोव की ड्राइंग पेंसिल स्पेस स्टेशन के वेंटिलेशन सिस्टम में तैरकर फंस गई जिससे वह अटक गया। जिससे वे चंद्रमा पर उतरने वाले पहले अंतरिक्ष यात्री नहीं बन सके। लेकिन इसके बावजूद वे स्पेस वॉक (1965 में) करने वाले पहले व्यक्ति के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे।
स्पेस सूट में आ गई थी खराबी लियोनोव का स्पेससूट मार्च 1965 में अपने स्पेसवॉक के दौरान अंतरिक्ष के तापमान और जटिल परिस्थितियों के कारण खराब हो गया था। उन्होंने वापस अंतरिक्ष स्टेशन पर लौटने का प्रयास किया लेकिन तब तक उनके स्पेस सूट में आधी ऑक्सीजन खत्म हो चुकी थी। इससे वापसी के दौरान उनके शरीर पर अंतरिक्ष के जीरो ग्रेविटी के कारण अत्यधिक दबाव पड़ने लगा। पूरा स्पेस वॉक मिशन आपातकालीन स्थितियों में फंसा हुआ था। स्पेस स्टेशन कॉस्मोनॉट्स को स्वचालित की बजाय मैन्युअली संचालित कर उन्हें पृथ्वी पर वापसी करनी पड़ी।
उनकी युक्ति काम कर गई। लेकिन यान लैंडिंग की जगह से कई मील दूर बर्फीली पहाडिय़ों में उतर गया। बाद में उन्हें और उनके साथी पावेल बेलीयेव को एक बचाव दल ने सुरक्षित अंतरिक्ष केन्द्र पहुंचाया। ऐसी जटिल और जान के जोखिम वाली आपातकालीन परिस्थितियों में भी उन्होंने गजब के धैर्य और सूझ-बूझ का परिचा दिया। उन्हीं की वजह से दोनों पृथ्वी पर सकुशल वापस आ सके थे। यही कारण था कि बाद में उन्हें सोवियत संघ के चंद्रमा पर उतरने के पहले प्रयास की कमान भी सौंपी गई।
…तो लियोनोव रखते चांद पर पहला कदम अमरीका के अपोलो अंतरिक्ष कार्यक्रम से इतर सोवियत संघ पूरी गोपनीयता के साथ अपने पहले चंद्र मिशन की तैयारियों में जुटा हुआ था। चंद्रमा पर उतरने की यूएसएसआर की योजना बेहद गुप्त रखी गई थी। लियोनोव को चंद्रमा पर उतरने के लिए लूनर लैंडर की बजाय एक रूसी लड़ाकू एमआई-4 हेलिकॉप्टर में उतरने के लिए प्रशिक्षित किया गया। प्रशिक्षण के दौरान तय हुआ कि वे हेलिकॉप्टर के जरिए चांद की सतह से 110 मीटर यानि करीब 360 फीट ऊपर से लैंड करेंगे। इस दौरान हेलीकॉप्टर के इंजन को बंद कर दिया जाएगा और इसे ऑटो-रोटेशन में उतारा जाएगा।
लेकिन सोवियत रूस के इन प्रयासों को 1966 में तब झटका लगा जब सोवियत अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रमुख डिजाइनर और ड्राइविंग FORCE के निदेशक सर्गेई कोरोलेव का निधन हो गया। उनकी मृत्यु के बाद रूस के अंतरिक्ष कार्यक्रम ने अपनी गति खो दी। अगर सर्गेई कोरोलेव का असमय निधन नहीं होता तो नील आर्मस्ट्रांग की बजाय चंद्रमा पर पहला कदम लियोनोव का हो सकता था। रूसी अंतरिक्ष यान का डिजायन और लैंडिंग की समस्त प्रक्रिया इस मिशन के पूरा होने की शत-प्रतिशत उम्मीद जता रही थीं। 20 जुलाई, 1969 को अमरीका के अपोलो यान में सवार नील आर्मस्ट्रांग ने जब चंद्रमा पर कदम रखा तो उसी समय रूस ने अपने चंद्र मिशन को कार्यक्रम को रद्द कर दिया।
सोवियत यान की खासियत -सोवियत संघ का एलओके-एन१ अंतरिक्ष यान 105 मीटर ऊंचा यानि करीब 345 फीट लंबा था। -नासा के सैटर्न-वी लांचर के पांच इंजन की तुलना में इसमें एलओके-एन१ में 30 इंजन थे जो दो रिंगों में व्यवस्थित थे। -एन१ को कई छोटे-छोटे इंजनों को एक साथ जोड़कर बनाया गया था। यानि अगर कोई आपातकालीन परिस्थिति उत्पन्न होती है तो भी यात्रियों को सुरक्षित पृथ्वी पर लाया जा सकता था।