scriptन्यू रिसर्च: वैज्ञानिकों का दावा, जो पानी हम इस्तेमाल करते हैं उसका अधिकाँश हिस्सा डायनासोर के मूत्र से बना है | Scientists claim Water Contains Almost 100 Dinosaurs' Urine | Patrika News
विज्ञान और टेक्नोलॉजी

न्यू रिसर्च: वैज्ञानिकों का दावा, जो पानी हम इस्तेमाल करते हैं उसका अधिकाँश हिस्सा डायनासोर के मूत्र से बना है

2015 में यूट्यूब चैनल क्यूरियस माइंड्स पर अपलोड एक वीडियो फिर से ट्रेंड कर रहा है जिसमें दावा किया गया है कि पृथ्वी पर पाया जाने वाला पानी मेसोजॉइक युग में आस्तित्व में आया और इंसान पृथ्वी पर 2लाख साल पहले वजूद में आए। वीडियो के दावों के अनुसार इस बात की 100% संभावना है कि पानी के रूप में हम डायनासोर के पेशाब या मूत्र का उपभोग कर रहे हैं।

Nov 28, 2020 / 02:36 pm

Mohmad Imran

न्यू रिसर्च: वैज्ञानिकों का दावा, जो पानी हम इस्तेमाल करते हैं उसका अधिकाँश हिस्सा डायनासोर के मूत्र से बना है

न्यू रिसर्च: वैज्ञानिकों का दावा, जो पानी हम इस्तेमाल करते हैं उसका अधिकाँश हिस्सा डायनासोर के मूत्र से बना है

वैज्ञानिक परिकल्पनाओं (Scientists Theory) और उनकी पड़ताल करने वाला एक यूट्यूब चैनल ‘क्यूरियस माइंड्स’ (Curious Mind’s) का 2015 में अपलोड किया गया एक वीडियो इन दिनों दोबारा ट्रेंड कर रहा है। इस वीडियो में दावा किया गया है कि आज हम जिस पानी का उपभोग कर रहे हैं वह अधिकांश जल डायनोसोर के मूत्र या पेशाब का ही अंश है। वीडियो में बताया गया है कि हर साल लगभग 1.21 लाख क्यूबिक मील पानी (1,21,000 cubic miles of water) वर्षा के माध्यम से पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचता है। पृथ्वी पर पाया जाने वाला पानी मेसोजॉइक युग (Mesozoic Era) में आस्तित्व में आया और इंसान पृथ्वी पर 2 लाख साल पहले वजूद में आए। इस तरह मेसोजोइक युग में डायनासोरों ने लगभग 186 मिलियन सालों तक पृथ्वी पर शासन किया। इस दौरान उन्हें बहुत सारा पानी पीने का समय मिला।
न्यू रिसर्च: वैज्ञानिकों का दावा, जो पानी हम इस्तेमाल करते हैं उसका अधिकाँश हिस्सा डायनासोर के मूत्र से बना है

हमें पानी के सभी मॉलीक्यूल्स कभी नहीं मिले
इतना ही नहीं, वीडियो में यह भी दावा किया गया है कि 8 औंस के गिलास में अधिकांश पानी के अणुओं का सेवन किसी मनुष्य द्वारा कभी नहीं किया जा सका क्योंकि लगभग हर अणु डायनासोरों ने ही पी लिया था। इंसानों की तरह, डायनासोर भी बहुत अधिक मात्रा में पानी पीते थे और उसे अपशिष्ट के रूप में निकालकर दोबारा नया ताजा पानी पी लेते थे। इसका मतलब है कि २ लाख साल पहले वजूद में आए मानव इन विशालकाय प्राणियों के मूत्र का ही आज उपभोग कर रहे हैं।

न्यू रिसर्च: वैज्ञानिकों का दावा, जो पानी हम इस्तेमाल करते हैं उसका अधिकाँश हिस्सा डायनासोर के मूत्र से बना है

42 सुपरझीलों जितना पानी बरसता सालाना
लगभग 1.21 लाख क्यूबिक मील पानी जो 42 सुपीरियर झीलों के बराबर है, हर साल पृथ्वी पर वर्षा के रूप में समुद्र, झीलों और नदियों के साथ-साथ जमीन के नीचे भूमिगत रूप से सहेजकर रखा जाता है। इसके अलावा इंसानों, जीव-जंतुओं और वनस्पतियों द्वारा उपयोग कर लिया जाता है। स्टीव मैक्सवेल और स्कॉट येट्स ने अपनी पुस्तक ‘द फ्यूचर ऑफ वॉटर: स्टार्टिंग लुक अहेड’ में लिखा है कि हम उसी पानी का उपभोग कर रहे हैं जिसे डायनासोर अतीत में पीकर शरीर से बाहर निकाल चुके हैं। वहीं डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, जीवाश्म ईंधन जलकर हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं लेकिन पानी अलग-अलग स्वरूपों में हमेशा मौजूद रहता है। पानी को लेकर ऐसा दावा करने वाले स्टीव मैक्सवेल और स्कॉट येट्स अकेले वैज्ञानिक नहीं हैं। ‘द बिग थर्स्ट’ नामक किताब में, चार्ल्स फिशमैन ने भी दावा किया है कि पानी के अणु बहुत लचीले हैं और लाखों वर्ष पुराने हैं। फिशमैन के अनुसार, हम एक गिलास में जितना पानी पीते हैं उसका अधिकांश हिस्सा लाखों वर्ष पहले ही किसी डायनासोर के शरीर से गुजरकर इस गिलास तक पहुंचा है।

न्यू रिसर्च: वैज्ञानिकों का दावा, जो पानी हम इस्तेमाल करते हैं उसका अधिकाँश हिस्सा डायनासोर के मूत्र से बना है

ऐसे बना पृथ्वी पर जल का भंडार
पानी पृथ्वी के 70 फीसदी से अधिक हिस्से को कवर करता है और यह नदियों और महासागरों से बादलों तक लगातार एक चक्र के रूप में गतिशील रहता है। इतना ही नहीं मानव शरीर का भी लगभग 60 फीसदी हिस्सा पानी ही है। टेड-एड (TED-ed video) के एक वीडियो ‘धरती का पानी कहां से आया’ में जाचारी मेट्ज ने बताया कि पानी कैसे बनता है। मुख्य रूप से पानी दो अणुओं हाइड्रोजन और ऑक्सीजन से मिलकर बना है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी के कोर पर अत्यधिक दबाव ने हाइड्रोजन के परमाणुओं को हीलियम में बदल दिया। सुपरनोवा कंडीशन में किसी तारे के फटने के बाद नए तत्व ब्रह्मांड में फैल गए और एच2ओ (H2O) जैसे यौगिकों में तब्दील हो गए। हालांकि, कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी का जिन चट्टानों से निर्माण हुआ है उनमें हाइड्रोजन की प्रचुर मात्रा पहले से ही मौजूद थी। वहीं अधिकतर वैज्ञानिकों का मानना है कि पृथ्वी के निर्माण के समय बर्फ से भरे धूमकेतुओं और क्षुद्रग्रहों ने टकराने के लाखों वर्षों के दौरान यहां पानी के भंडारों का निर्माण किया होगा।

न्यू रिसर्च: वैज्ञानिकों का दावा, जो पानी हम इस्तेमाल करते हैं उसका अधिकाँश हिस्सा डायनासोर के मूत्र से बना है

पृथ्वी पर पानी कैसे गतिशील रहता है?
विज्ञान के अनुसार, पृथ्वी पर पानी के पहले सबूत मिलने के 3,800 मिलियन साल बाद से ही पृथ्वी पर पानी चौतरफा मौजूद है। इसका मतलब यह है कि जब 230 मिलियन वर्ष पहले डायनासोर इस पृथ्वी पर विचरते थे, तो वही पानी मौजूद था जो आज हम इस्तेमाल कर रहे हैं। यानी हम जुरासिक काल (Jurrasic World) में इस्तेमाल होने वाले उसी पानी का उपभोग कर रहे हैं। पानी लगातार गतिशील रहता है और खुद को तरल से ठोस या गैस में बदलता रहता है। इतना ही नहीं, ‘अंतर्राष्ट्रीय जल संघ बोर्ड’ के सदस्य डैनियल नोल्स्को द्वारा भी पानी के पुन: उपयोग को डायनासोर के मूत्र के रूप में ही वर्णित किया है।

न्यू रिसर्च: वैज्ञानिकों का दावा, जो पानी हम इस्तेमाल करते हैं उसका अधिकाँश हिस्सा डायनासोर के मूत्र से बना है

Hindi News / Science & Technology / न्यू रिसर्च: वैज्ञानिकों का दावा, जो पानी हम इस्तेमाल करते हैं उसका अधिकाँश हिस्सा डायनासोर के मूत्र से बना है

ट्रेंडिंग वीडियो