1980 में हुआ था पहला प्रयास
एडिटिव मैनुफैक्चरिंग जिसे 3D प्रिंटिंग भी कहते हैं, इसकी सबसे पहले कोशिश 1980 के दशक में की गयी थी। प्रारंभ में इससे बने प्रोटोटाइप को तेजी से औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिए उपयोग किया जाता था। लेकिन 2010 और 2020 के दौरान नाटकीय रूप से इसकी लागत में कमी आई है और अब यह औद्योगिक उपयोग से निकलकर आम आदमी के भी काम आने लगे हैं। 3D प्रिंटिंग संभवतः स्वास्थ्य और चिकित्सा में सबसे अधिक परिवर्तनकारी सफलताएँ लेकर आयी है। कस्टमाइज़्ड , 3 डी-मुद्रित शरीर के अंग लोगों के जीवन बचा रहे हैं। इनमे कृत्रिम जबड़े की हड्डियों से लेकर सांस लेने के लिए बायोरसोर्बबल स्प्लिन्ट्स, दंत प्रत्यारोपण और एक्सोस्केलेटन और कई अन्य उपयोगों के अलावा खोपड़ी के हिस्सों को शामिल किया जा सकता है।