दो दशक पहले तक कठपुतली कला मनोरंजन के साथ बच्चों की शिक्षा, जनसामान्य को प्रेरक संदेश देने का माध्यम हुआ करती थी। गुजरते समय के साथ उंगली के इशारे पर धागों के सहारे दिखाई जाने वाली यह कला अपनी पहचान खोती गई। लेकिन अब एक बार फिर नई पीढ़ी को कला, मनोरंजन, खेल के जरिए शिक्षा से जोड़ने की कवायद शुरू की जा रही है। सांस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र (सीसीआरटी) नई दिल्ली की ओर से देशभर के शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसमें सवाईमाधोपुर जिले से शिक्षक प्रशिक्षण लेने पहुंचे हैं।
सहायक साबित होगी
नई शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप शिक्षा में पुतली कला की भूमिका का भी उल्लेख किया है। शिक्षा नीति में स्पष्ट किया है कि प्राथमिक स्तर के विद्यार्थियों के शिक्षण कार्य के लिए पुतली कला एक महत्वपूर्ण सहायक सामग्री हो सकती है। पुतली कला की इस महत्ता को देखते हुए सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण केन्द्र (सीसीआरटी) नई दिल्ली की ओर से सेवारत शिक्षकों को देशभर में स्थित क्षेत्रीय प्रशिक्षण केन्द्रों पर इस विद्या का प्रशिक्षण कराया जा रहा है।
हैदराबाद में कराया जा रहा प्रशिक्षण
सीसीआरटी के क्षेत्रीय केन्द्र हैदराबाद में इन दिनों 15 दिवसीय प्रशिक्षण में महात्मा गांधी राजकीय विद्यालय कुश्तला सवाईमाधोपुर से ओमप्रकाश मीना, राजकीय प्राथमिक विद्यालय मेघवाल फला से मयूर देबड़ा, मगारावि खेड़ा से सचिन, डीएल गुप्ता राउमावि डीग से मनोज कुमार व चूरू से अशोक कुमार सहारण सहित पांचों सेवारत शिक्षक शिक्षा में पुतली कला की भूमिका विषय में सीसीआरटी के क्षेत्रीय प्रशिक्षण केन्द्र में प्रशिक्षण ले रहे हैं। प्रशिक्षण के बाद प्रशिक्षित शिक्षक इस कलां से विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ पुतली कलां का पाठ पढ़ाएंगे। सीसीआरटी क्षेत्रीय केन्द्र हैदराबाद में सांस्कृतिक मंत्रालय से कराए जा रहे प्रशिक्षण में विभिन्न राज्यों के 55 संभागी भाग ले रहे हैं।