दरअसल 12वीं की शिक्षा हासिल करने के बाद वो शहर आई तो कॉलेज में हर कोई अंग्रेजी में बात करता था। अंग्रेजी नहीं बोल पाने की वजह से क्लास में कई बार सुरभि का मजाक बनाया गया। सभी सब्जेक्ट में टॉप करने वाली सुरभि के लिए अंग्रेजी एक मात्र मुश्किल सब्जेक्ट था। ऐसे में उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से साबित किया कि भाषा से नहीं मेहनत से सफलता हासिल की जाती है। सुरभि के लिए अंग्रेजी भाषा सबसे बड़ी समस्या थी।
बता दें कि अमदरा गांव निवासी सुरभि गौतम के पिता मैहर सिविल कोर्ट में वकील हैं और मां डॉ. सुशीला गौतम अमदरा हायर सेकंडरी स्कूल में शिक्षिका हैं। सुरभि बचपन से ही पढऩे में मेधावी रही हैं। हाईस्कूल में सुरभि को 93.4 प्रतिशत अंक मिले थे। यही वो नंबर थे, जिन्होंने सुरभि के सपनों और सफलता की नींव रखी। इन्हीं नंबरों के बाद से सुरभि ने कलेक्टर बनने का सपना देखना शुरू कर दिया था। इनकी सफलता ने उन सभी एशो आरामों को खारिज किया है, जिनकी मदद से बड़े-बड़े पद हासिल किए जाते हैं। अमदरा से ही उन्होंने अपनी 12वीं तक की पढ़ाई की। 12वीं तक वो एक ऐसे स्कूल में पढ़ीं, जिस स्कूल में मूलभूत जरूरतों का गहरा अभाव था। वहां न तो अच्छे टीचर थे और न ही पढ़ाई-लिखाई की अच्छी व्यवस्था थी। किताबें समय पर नहीं मिलती थीं। सुरभि के गांव में बिजली भी अच्छी व्यवस्था नहीं थी। बचपन के दिनों में सुरभि को लाटेन जला कर रात में पढ़ाई करना पड़ता था।