scriptCyber fraud: महाराष्ट्र और राजस्थान की फेक सिम का हो रहा था उपयोग, नेट बैंकिंग के जरिए चेन्नई पहुंचती थी रकम | Cyber fraud: Fake SIM cards of Maharashtra and Rajasthan were being used, money was reaching Chennai through net banking | Patrika News
सतना

Cyber fraud: महाराष्ट्र और राजस्थान की फेक सिम का हो रहा था उपयोग, नेट बैंकिंग के जरिए चेन्नई पहुंचती थी रकम

जबलपुर न्यायालय ने 12 आरोपियों को भेजा जेल
इंडस इंड बैंक के मैनेजर की भूमिका भी सवालों में

सतनाJan 09, 2025 / 10:23 am

Ramashankar Sharma

सतना। साइबर फ्राॅड के जरिए लोगों से ठगी गई राशि को म्यूल खातों की सहायता से मनी लॉन्ड्रिंग कर ठिकाने लगाने वाले गिरोह के सतना से पकड़े गए आधा दर्जन लोगों सहित 12 आरोपियों को बुधवार को जबलपुर में न्यायालय में पेश किया गया। सभी को कोर्ट ने जेल भेज दिया। इधर इस मामले में जांच एजेंसियों की मानें तो टेरर फंडिंग का मामला अभी तक सामने नहीं आया है, बल्कि लोकल साइबर फ्राॅड का मामला निकल कर आ रहा है। इसमें लोगों को झांसा देकर लंबी रकम की ठगी की जाती है और विभिन्न खातों में डालकर अंत में मुख्य साजिशकर्ता यह राशि अपने कब्जे में ले लेता है। मामले में खातों के संचालन के लिए महाराष्ट्र और राजस्थान की फर्जी सिमों का उपयोग किया गया है। साथ ही बैंक खातों से राशि नेट बैंकिंग के जरिए चेन्नई या उसके आसपास के क्षेत्र में निकाली गई है।
cyber crime
जांच एजेंसियों के विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि सतना में बिरला यार्ड में काम करने वाले जिन गार्डों के जरिए इस फर्जीवाड़े का भंडाफोड़ हुआ है उसमें इंडस इंड बैंक की संबंधित शाखा की भूमिका सवालों में आ गई है। गार्डों को झांसा देकर उनके आधार कार्ड, पैन कार्ड, मोबाइल नंबर तो लिए गए और खाता खोलने के फार्म आदि में हस्ताक्षर भी लिए गए, लेकिन जब बैंक में इन दस्तावेजों को जमा किया गया तो खाता धारकों (गार्ड) के मोबाइल नंबर न लिखवा कर कोई अज्ञात मोबाइल नंबर लिखाए गए। ये मोबाइल नंबर मुख्य साजिशकर्ता के उपयोग में थे। ये सभी सिम फर्जी तरीके से हासिल की गईं थीं।
यूपीआई से राशि जमा होती थी, नेट बैंकिंग से निकल जाती थी

सूत्रों की माने इंडस इंड बैंक में झांसा देकर मनी लांड्रिंग के लिए खुलवाए गए खातों में यूपीआई के जरिए राशि आती थी। यह राशि ज्यादा बड़ी नहीं होती थी। छोटी छोटी राशि कर जालसाज इन खातों में डालते थे। इसके बाद जब राशि एक बडे अमाउंट में आ जाती थी तो उसे नेट बैंकिंग के जरिए निकाल लिया जाता था। निकालने का काम चेन्नई और उसके आसपास के इलाकों से होना बताया जा रहा है।
बैंक प्रबंधन की भूमिका संदिग्ध

मामले में इंडस इंड बैंक प्रबंधन की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है, क्योंकि खाते तो बैंक मित्र अथवा कियोस्क द्वारा आधार कार्ड और अंगूठे के जरिए खोले जा सकते हैं, लेकिन खाता एक्टीवेशन की प्रक्रिया बैंक कर्मियों द्वारा की जाती है। इसके लिए एक तय प्रोटोकॉल है। इस मामले में प्रोटोकाल का पालन नहीं किया गया और न मोबाइल नंबर को वैरीफाई किया गया। इस चेक बैरियर को अगर लांघ भी लिया जाए तो बैंक के अन्य प्रोटोकॉल के अनुसार संबंधित खाते का एटीएम, नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग सहित अन्य दस्तावेज खाता धारक के पते पर भेजे जाते हैं, जो घर में पहुंचते हैं। अगर घर में संबंधीजन नहीं मिलता है तो फिर यह सभी खाताधारक को ही बैंक द्वारा उचित पहचान के बाद दिया जाता है। इस मामले में एटीएम, नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग आदि किसी एक व्यक्ति को ही जो खाताधारक नहीं है बैंक द्वारा कैसे दे दिए गए? यहीं से बैंक प्रबंधन की इस मामले में मिलीभगत स्पष्ट है। दूसरा तथ्य यह है कि जब खाताधारक मामले की शिकायत लेकर पहुंचे तो बैंक प्रबंधन ने तब इसकी सूचना अपनी अथारिटी को क्यों नहीं दी और इस फ्राॅड पर पुलिस को सूचित क्यों नहीं किया?
एटीएस केस से अलग हुई

शुरुआती दौर में इस मामले में टेरर फंडिंग की आशंका को देखते हुए विवेचना का काम एटीएस को दिया गया था। जांच में टेरर फंडिंग का मामला सामने नहीं आने पर एटीएस ने खुद को इस केस से अलग कर लिया है। अब साइबर फ्राड का मामला होने के कारण साइबर पुलिस इस केस को देख रही है। उधर जानकारों का मानना है कि अभी जो एफआइआर दर्ज हुई है उसके अनुसार केस मनी लांड्रिंग का दर्ज किया गया है। जिसके अनुसार इस मामले के नेटवर्क को बर्स्ट करना था। जो कि हो गया है। लेकिन मौजूदा धाराओं के अनुसार अभी इस साइबर फ्राड में मूल जालसाज और राशि कहां निकाली जाती थी इसके लिए अलग धाराएं शामिल करनी होंगी। हालांकि यह तथ्य जांच के बाद आगे सामने आ सकेगा।
सभी 12 आरोपी कोर्ट में पेश, 14 दिन की न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेजा गया

इधर साइबर फ्रॉड के लिए फर्जी खाते खुलवाने और उन्हें साइबर ठगों को बेचने वाले गिरोह के 12 सदस्यों को एटीएस और स्टेट साइबर सेल की टीम ने बुधवार को न्यायालय में पेश किया, जहां से सभी को 14 दिन की न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया। इस गिरोह पर कई महीनों से एटीएस (एन्टी टेरेरिस्ट स्क्वाड) की नजर थी। एटीएस को संदेह था कि गिरोह द्वारा खातों में करोड़ो का ट्रांजक्शन कर उसे देश विरोधी गतिविधियों के लिए उपयोग किया जा रहा है। एटीएस ने एक-एक एकाउंट और उसमें होने वाले लेनदेन की गोपनीय तरीक से जांच की। गिरफ्तार किए गए सभी 12 आरोपियों की गतिविधियों पर नजर रखी।
cyber crime
करोड़ों का बेनामी ट्रांजेक्शन

एटीएस की जांच में यह बात सामने आई थी कि गिरफ्तार किए गए आरोपियों और उनके गिरोह के अन्य सदस्यों ने सैकडों बैंक खाते खुलवाए थे। इसमें करोड़ों रुपए का बेनामी ट्रांजक्शन हुआ। एक-एक खाते में एक करोड़ रुपए से ज्यादा के लेन देन दो से तीन महीने में हो रहे थे। प्राथमिक जांच में यह माना जा रहा है कि जालसाजी की इस चेन में 200 करोड़ रुपये से ज्यादा का ट्रांजेक्शन मनी लांड्रिंग के जरिए किया गया है।
इन राज्यों से मिला कनेक्शन

आरोपियों के दिल्ली, गुडगांव, रायपुर, हरियाणा, तमिलनाडू, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश से भी कनेक्शन मिले है। आरोपी उक्त शहरों और जिलों में साइबर ठगों को एकाउंट बेचा करते थे। टीम यह भी पता लगा रही है कि वहां कौन इन आरोपियों से एकाउंट खरीदता था। आरोपियों द्वारा खोले जाने वाले बैंक एकाउंट्स में डिजीटल अरेस्ट, साइबर धोखाधड़ी समेत साइबर से जुड़े अन्य अपराधों समेत हवाला और कई बार ऑनलाइन सट्टे की रकम का ट्रांजेक्शन होता था। इसके साथ ही कई बार हवाला और क्रिकेट सट्टे समेत अन्य अवैधानिक लेनदेन भी किए जाते थे।

Hindi News / Satna / Cyber fraud: महाराष्ट्र और राजस्थान की फेक सिम का हो रहा था उपयोग, नेट बैंकिंग के जरिए चेन्नई पहुंचती थी रकम

ट्रेंडिंग वीडियो